भद्रा के साए में होलिका दहन, जानें शुभ मुहूर्त और कब है होली

धार्मिक व सामाजिक एकता का त्योहार होली के होलिका दहन का पर्व गुरूवार को मनाया जाएगा । इसके लिए शहर चौराहे, गली मोहल्ले में लकड़ियों से होली सजाने की तैयारी हो रही है। भद्रा के चलते इस बार होलिका दहन के लिए एक घंटा चार मिनट का समय रहेगा। वहीं रंगोत्सव शुक्रवार को मनाया जाएगा।प्रत्येक वर्ष फाल्गुन मास के शुल्क पक्ष की पूर्णिमा की रात को होलिका दहन किया जाता है।
हिंदू धर्म के अनुसार, होलिका दहन को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना गया है। इस बार फाल्गुन पूर्णिमा तिथि गुरुवार सुबह 10 बजकर 25 मिनट से शुक्रवार दोपहर 12 बजकर 23 मिनट तक रहेगी। इस बार होलिका दहन के दिन भ्रदा मुख का साया आठ बजकर 14 मिनट से रात 10 बजकर 44 मिनट तक रहेगा। इसके बाद होलिका दहन किया जा सकता है। हालांकि मुहूर्त मूहुर्त रात 11 बजकर 26 मिनट से शुरू होकर 12 बजकर 30 मिनट तक रहेगा। वहीं अगले दिन रंगोत्सव मनाया जाएगा।

इस प्रकार करे पूजन

स्नान के बाद होलिका की पूजा वाले स्थान पर उत्तर अथवा पूरब दिशा की ओर मुंह करके बैठ जाएं। पूजा करने के लिए गाय के गोबर से होलिका व प्रह्लाद की प्रतिमा बनाएं। पूजा की सामग्री के लिए रोली, फूल, फूलों की माला, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल नारियल, पांच से सात तरह के अनाज व एक लोटे में पानी रख लें।इन सभी पूजन सामग्री के साथ पूरे विधि-विधान से पूजा करें। मिठाइयां व फल चढ़ाएं। होलिका के साथ ही भगवान नृसिंह की भी पूजा करें। होलिका के चारों ओर सात बार परिक्रमा करें।

होलिका दहन की पवित्र अग्नि में डालें ये चीजें

  • होलिका दहन की पवित्र अग्नि में सूखा नारियल डालना शुभ माना जाता है।
  • इसमें गेहूं की बालियां, गोबर के उपले और काले तिल के दाने अर्पित करें, ऐसा करने से जीवन के सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है।
  • धन लाभ के लिए होलिका दहन में चंदन की लकड़ी अर्पित करें।
  • कारोबार में लाभ और रोजगार के लिए होलिका दहन में पीली सरसों चढ़ाएं।
  • होलिका दहन में अक्षत और ताजे फूल भी जरूर अर्पित करें।
  • होलिका को साबुत मूंग की दाल, हल्दी के टुकड़े, और गाय के सूखे गोबर से बनी माला अर्पित करें।
  • अच्छे स्वास्थ्य के लिए होलिका दहन की पवित्र अग्नि में काले तिल के दाने अर्पित करने चाहिए।

होलिका दहन  पूजा मंत्र

  • ‘ऊं नृसिंहाय नम:
  • ‘अनेन अर्चनेन होलिकाधिष्ठातृदेवता प्रीयन्तां नमम्।।’
  • ‘वन्दितासि सुरेन्द्रेण ब्रह्राणा शंकरेण च। अतस्त्वं पाहि नो देवि विभूतिः भूतिदा भव।

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