
याचिका कर्ता ने दावा किया कि कानून में प्रावधान है कि जब मुख्य चुनाव में एक साल से कम समय रह गया हो तो उपचुनाव नहीं कराया जा सकता. जब विधानसभा चुनाव सिर्फ पांच-छह महीने दूर हैं तो अकोला पश्चिम में उपचुनाव की क्या जरूरत है? ये उपचुनाव कर मतदाताओं पर वोट डालने का बोझ डाला जा रहा है वही शासकीय व्यवस्थाओं पर भी अनावश्यक बोझ डाला जा रहा है।
वर्षभर से अधिक समय बीत जाने के बाद भी चंद्रपुर, पुणे लोकसभा उपचुनाव नहीं हुए। हालांकि, याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया था कि अकोला में उपचुनाव कराकर जनता के पैसे की बर्बादी की जा रही है. याचिकाकर्ताओं की दलीलों को स्वीकार करते हुए कोर्ट ने अकोला (पश्चिम) उपचुनाव अधिसूचना रद्द करने का आदेश दिया. याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट. जगविजय सिंह गांधी ने पक्ष रखा. चुनाव आयोग की ओर से वकील श्रीकांत धरस्कर और राज्य सरकार की ओर से वकील देवेन्द्र चव्हाण ने पक्ष रखा।



