Reduces Wastage Of Manpower And Water: भारतीय रेलवे का ट्रेनों की धुलाई करने वाला ऑटोमैटिक कोच वॉशिंग प्लांट इन दिनों चर्चा में है। हो भी क्यूं न, क्योंकि इसकी खासियतें इसे अलग बनाती हैं। माना जा रहा है कि यह प्लांट रेल धुलाई में बड़ी क्रांति लाने वाला है।
इस प्लांट की मदद से मानवश्रम को काफी हद तक तो कम किया ही जा सकता है। बल्कि पर्यावरण का संरक्षण के लिए भी यह काफी महत्वपूर्ण है। कैमिकल का काफी कम मात्रा में प्रयोग करके एक ट्रेन की धुलाई तकरीबन 15 मिनट में हो जाती है। जबकि इससे पहले एक ट्रेन को धोने में दर्जनों कर्मचारी घंटों तक लगे रहते थे। वहीं पानी का दोहन भी खूब होता था। जबकि ऑटोमैटिक कोच वॉशिंग प्लांट में ऐसी व्यवस्था की जाती है कि धुलाई का 80 फीसदी पानी का इस्तेमाल फिर से कर लिया जाता है। इससे जल के दोहन पर भी लगाम लगी है।
मैकेनाइज्ड क्लीनिंग सिस्टम पर बेस्ड है प्लांट
देश के विभिन्न रेलवे स्टेशनों पर ऑटोमैटिक कोच वॉशिंग प्लांट लगाने का काम शुरू हो चुका है। यह प्लांट पीपीपी मॉडल पर लगाए जा रहे हैं। इसकी खासियतों को देखते हुए ही रेलवे ने इस प्लांट को मंजूरी दी है। प्लांट से पहले दर्जनों लोग एक ट्रेन को धोने में घंटों का समय लगाते थे। लेकिन अब ऑटोमैटिक मैकेनाइज्ड क्लीनिंग सिस्टम पर बेस्ड यह प्लांट घंटों का काम मिनटों में कर देता है। 24 डिब्बों की ट्रेन को यह प्लांट लगभग 15 मिनट में साफ कर देता है। इतना ही नहीं, टॉयलेट के नीचले हिस्से को भी साफ कर उसे संक्रमण मुक्त बनाता है। इससे पहले इस हिस्से की सफाई ठीक से नहीं हुआ करती थी। हमेशा संक्रमण का खतरा रहता था।
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रेल धुलाई में ऐसे खत्म हुआ जल का दोहन
ऑटोमैटिक कोच वॉशिंग प्लांट आम धुलाई के मुकाबले लगभग 20 फीसदी ही पानी का इस्तेमाल करता है। वहीं इस 20 फीसदी पानी से जब ट्रेन की धुलाई होती है तो इसका लगभग 80 फीसदी पानी फिर से प्रयोग में ले लिया जाता है। इसके लिए प्लांट में पानी को साफ करने की भी व्यवस्था है।
यह प्लांट समय की बचत के साथ मानवश्रम को भी काफी हद तक कम करने में सक्षम है। ट्रेन के गुजरने पर प्लांट पहले एक कैमिकल का छिड़काव करता है। इसके बाद बड़े-बड़े ब्रश और पानी के जरिए ट्रेन के कोच को साफ करता है। इस प्लांट में मैन्यूअल कुछ भी नहीं है। बल्कि ठंडा व गर्म पानी हाईप्रेशर से ट्रेन के ऊपर डालता है।