नई दिल्ली -भगवान राम और रावण के बीच हुई भयंकर लड़ाई ने न केवल रामराज्य की स्थापना की, बल्कि हमें यह भी सिखाया कि बुराई पर अच्छाई की विजय होती है। रावण द्वारा माता सीता के हरण के बाद, श्रीराम ने अपनी विशाल वानर सेना के साथ लंका पर चढ़ाई की और रावण को हराया। इस युद्ध में वानर सेना की महत्वपूर्ण भूमिका थी, लेकिन रामायण की कथा के बाद एक सवाल अक्सर उठता है कि
“लंका विजय के बाद वानर सेना का क्या हुआ?”
क्या आपने कभी सोचा है कि इस युद्ध में महत्वपूर्ण योगदान देने वाली वानर सेना के सदस्य, जैसे सुग्रीव, अंगद, नल, नील और अन्य योद्धा, फिर कहां गए? क्यों उन्होंने कोई और युद्ध नहीं लड़ा या उनका अस्तित्व क्यों छिप गया? आइए, रामायण के उत्तरकांड के संदर्भ में इसे समझते हैं।
वानर सेना की भूमिका
रामायण में लंका युद्ध के दौरान वानर सेना ने अपनी पूरी ताकत से श्रीराम का साथ दिया। सुग्रीव, अंगद, नल, नील जैसे महान योद्धाओं ने अपनी पूरी ताकत और रणनीतियों से राम की विजय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। विशेष रूप से, नल और नील की सहायता से वानरों ने रामेश्वरम से लेकर श्रीलंका तक पुल का निर्माण किया था। लंका पर चढ़ाई के लिए वानर सेना ने विभिन्न समूहों में विभाजन किया था, जिनके प्रत्येक समूह का एक सेनापति था, जिसे यूथपति कहा जाता था।
रामायण के उत्तरकांड में इसके बारे में विस्तार से उल्लेख किया गया है। लंका युद्ध के बाद जब युद्ध समाप्त हुआ और रावण का वध हुआ, तो वानर सेना के सदस्य अपने-अपने राज्यों में लौट गए।
सुग्रीव का राज्याभिषेक
राम ने लंका विजय के बाद अपने मित्र सुग्रीव को किष्किंधा का राजा बना दिया। सुग्रीव और उनके भाई अंगद ने किष्किंधा में शासन किया और वहां की व्यवस्थाओं को संभाला। किष्किंधा में वानर साम्राज्य का विस्तार हुआ, और वहां कई वर्षों तक सुग्रीव और अंगद का शासन रहा।
नल और नील का योगदान
नल और नील ने भी किष्किंधा में सुग्रीव के साथ मिलकर कई वर्षों तक राज्य का कार्य संभाला। वे वानर सेना के महत्वपूर्ण नेता थे, जो युद्ध में श्रीराम के साथ लड़े थे। युद्ध के बाद वे मंत्री पद पर रहे और सुग्रीव के प्रशासन में मदद की।
लड़ा कोई और युद्ध क्यों नहीं?
लंका विजय के बाद वानर सेना ने कोई बड़ा युद्ध क्यों नहीं लड़ा? इसका कारण यह था कि राम ने जब अयोध्या का राज्याभिषेक किया और राजसभा में उपस्थित लोगों से अयोध्या, किष्किंधा और लंका को एकजुट करने का प्रस्ताव रखा, तो उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया। श्रीराम ने यह निर्णय लिया कि वह किसी भी राज्य का विस्तार करने के बजाय, केवल अपने राज्य की देखभाल और शांति स्थापित करेंगे। इसके बाद वानर सेना के सदस्य अपने-अपने घर लौट गए, और किष्किंधा तथा अन्य क्षेत्रों में शांति और समृद्धि का समय आया।
किष्किंधा का महत्व और वानर साम्राज्य
किष्किंधा, जो आज कर्नाटक में स्थित है, वह वह स्थान है जहां वानर साम्राज्य था। किष्किंधा के आसपास का क्षेत्र अब भी रामायण से जुड़ी कई पुरानी गुफाओं और स्थानों के लिए प्रसिद्ध है। यहां के जंगलों में वह दंडक वन भी था, जिसे राम और लक्ष्मण ने अपना शरण स्थल बनाया था। किष्किंधा के क्षेत्र में ही वानर सेना का मुख्यालय था, जहां से वे श्रीराम की सेवा में अपनी पूरी ताकत लगाते थे।
श्रीराम के राज्याभिषेक के बाद वानर सेना का अयोध्या आगमन
श्रीराम के राज्याभिषेक के समय, वानर सेना के सभी प्रमुख सदस्य जैसे सुग्रीव, अंगद, नल और नील भी अयोध्या पहुंचे थे। अयोध्या में राम के राजतिलक के बाद वानर सेना ने राम की सत्ता को स्वीकार किया और फिर अपने-अपने राज्यों में लौट गए। इसके बाद वानर सेना ने कोई बड़ा संघर्ष या युद्ध नहीं लड़ा। उनका मुख्य उद्देश्य श्रीराम की मदद करना था, जो अब पूरी तरह से रामराज्य की स्थापना कर चुके थे।
लंका विजय के बाद वानर सेना का अस्तित्व केवल एक ऐतिहासिक कहानी के रूप में बचा रहा। युद्ध समाप्त होने के बाद, उन्होंने कोई और लड़ाई नहीं लड़ी, क्योंकि उनका मुख्य उद्देश्य केवल श्रीराम की सहायता करना था, जो अब अयोध्या में राजा बन चुके थे। किष्किंधा और अन्य राज्यों में शांति और समृद्धि स्थापित हो गई, और वानर सेना के सदस्य वहां के प्रशासन में अपनी भूमिका निभाते रहे। इस प्रकार, वानर सेना का गायब होना इस बात का प्रतीक था कि श्रीराम के राज्य में अब कोई अन्य बड़ा संघर्ष नहीं था, और रामराज्य का आदर्श स्थापित हो चुका था।
यह घटना हमें यह भी सिखाती है कि असल युद्ध न केवल शारीरिक लड़ाई होती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि अच्छे शासक और सच्चे मित्र हर कठिनाई में साथ रहते हैं और अंततः शांति और न्याय की स्थापना करते हैं।