लंडन- दुनिया में पहली बार लैब में विकसित खून लोगों को चढ़ाया गया है। यह कामयाबी ब्रिटेन में हुए क्लीनिकल ट्रायल में हासिल की गई है। कैम्ब्रिज और ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी सहित कई संस्थानाें के वैज्ञानिक इस ट्रायल में शामिल हैं। इससे ब्लड डिसऑर्डर्स और दुर्लभ ब्लड टाइप वाले लोगों के इलाज में मदद मिल सकेगी।
कैसे बनाया गया खून?
अगले स्टेप में वैज्ञानिक स्टेम सेल्स को प्रयोगशाला में भारी संख्या में विकसित करते हैं। इसके बाद इन्हें रेड ब्लड सेल्स में कन्वर्ट होने के लिए गाइड किया जाता है। पूरी प्रोसेस में करीब 3 हफ्ते लगते हैं। इस दौरान 5 लाख स्टेम सेल्स से 50 अरब रेड ब्लड सेल्स बन जाते हैं। इनसे 15 अरब रेड ब्लड सेल्स को फिल्टर किया जाता है, जो ट्रांसप्लांट में काम आ सकते हैं।
खून में रेडियोएक्टिव सब्स्टेंस मौजूद
120 दिन चलते हैं रेड ब्लड सेल्स
आमतौर पर रेड ब्लड सेल्स शरीर में 120 दिन टिकते हैं। इसके बाद इनकी जगह नए सेल्स ले लेते हैं। नॉर्मल डोनेशन में मिलने वाले खून में नए और पुराने दोनों रेड ब्लड सेल्स होते हैं। मगर लैब में बनाए गए खून के सेल्स पूरी तरह नए हैं। इसलिए वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि ये पूरे 120 दिन चलेंगे। इससे भविष्य में मरीजों को कम ब्लड डोनेशंस की जरूरत पड़ेगी।
नए खून की कीमत कितनी?
ब्रिटेन के नेशनल हेल्थ सर्विस ब्लड एंड ट्रांसप्लांट के मुताबिक, एक औसतन ब्लड डोनेशन की कीमत 145 यूरो यानी 13,666 रुपए होती है। लैब में तैयार किए जाने वाले खून की कीमत इससे तो ज्यादा ही होगी। संस्थान का कहना है कि अभी इस तकनीक की कोई कीमत तय नहीं की गई है, लेकिन जैसे-जैसे टेक्नोलॉजी आगे बढ़ेगी, वैसे-वैसे इसकी लागत घटती जाएगी।