छठ पूजा का चलन लगातार बिहार और भारत की भी सीमाओं के पार तक होता जा रहा है। इस पूजा में भगवान सूर्य को अर्घ्य देने का विशेष विधान है लेकिन ज्यादातर लोगों को अर्घ्य देने का सही तरीका तक नहीं मालूम है छठ पूजा में भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इतना तो सभी जानते हैं। लेकिन 90 प्रतिशत लोगों को भगवान सूर्य को अर्घ्य देने का सही तरीका नहीं मालूम है। यही तरीका हमारे ऋषि-मुनियों ने बताया था। बेहद दिलचस्प बात यह है कि ऋषि-मुनियों का बताया तरीका ही आधुनिक युग के डाक्टर भी सही मानते हैं।
सूर्य की किरणों में रोगों से बचाने की शक्ति
भास्कर साक्षात दर्शन देने वाले इकलौते देवता ही नहीं बल्कि प्रकृति और हमारे स्वास्थ्य का आधार भी हैं। इनकी किरणों में बैक्टीरिया-वायरस नष्ट कर हमें रोगाें से बचाने की अद्भुत शक्ति होती है। यही कारण है कि सूर्य को प्राकृतिक चिकित्सालय माना जाता है।
सूर्य को प्रतिदिन अर्घ्य देने का नियम
सूर्य की सप्तरंगी किरणों का हमें पूरा लाभ मिल सके इसलिए हमारे ऋषि-मुनियों ने बेहतर स्वास्थ्य सुनिश्चित करने के लिए प्रतिदिन अर्घ्य देने का नियम बनाया। सूर्य नवग्रहों के स्वामी है इसलिए उनके दुष्प्रभाव समाप्त होने के साथ सूर्य के प्रति आभार प्रकट करना इसका मुख्य उद्देश्य है। शास्त्रों में कहा गया है कि जब सूर्य की किरणें आंखों में चुभने लगें तब जल अर्पण करने का कोई लाभ नहीं होता है।
जल की गिरती धार के बीच से सूर्य को देखें
जल की गिरती धार से सूर्य की किरणों को जरूर देखने का विधान शास्त्रों में है। ताकि, आंखों की काली पुतलियां जल से सात रंगों में बंटी किरणों को अवशोषित कर शरीर में जिस रंग की कमी हो उसकी पूर्ति कर सकें। प्रतिदिन स्नान कर अर्घ्य देने से शरीर पर पड़ीं सूर्य की सातों किरणें सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह करती हैं।
गलत तरीके से हो सकती आंख की समस्या
भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के नियम का पालन नहीं किया जाए तो आंखों को नुकसान हो सकता है। यही कारण है कि महापर्व छठ के चार दिवसीय अनुष्ठान के बाद कई लोग आंखों की समस्या लेकर डाक्टरों के पास पहुंचते हैं। नेत्र रोग विशेषज्ञ डा. सुनील कुमार सिंह और न्यू गार्डिनर रोड के निदेशक डा. मनोज कुमार सिन्हा ने बताया कि सूर्य की तेज किरणों को सीधे आंखों से बहुत देर तक देखने पर रेटिनोपैथी से लेकर आंखों में छेद यानी मैकुलर होल तक की समस्या हो सकती है।
जल के माध्यम से सूर्य को देखना बेहतर
यही कारण है कि हमारे ऋषि-मुनियों ने अर्घ्य देने का जो नियम दिया था, उसमें अर्घ्य पात्र या हथेली को सिर से ऊपर रखते हुए जल गिराने और उसके माध्यम से सूर्य की किरणों को देखने का नियम बनाया था। जल के पीछे से सूर्य देखने पर भी आंखों को नुकसान नहीं हो इसीलिए सूर्याेदय के एक घंटे बाद और सूर्यास्त के एक घंटे पूर्व अर्घ्य देने का विधान है।
जब तक जल गिरे, तभी तक दें अर्घ्य
सुबह और शाम जब किरणों की तीव्रता कम हो जाती है यानी सूर्य लाल हो जाता है, अर्घ्य का विधान दिया था। सूर्योदय व सूर्यास्त के समय भी जबतक अर्घ्य का जल गिरे तभी तक भगवान सूर्य को देखना चाहिए। लंबे समय तक एकटक भगवान सूर्य को निहारने से भी आंखों को समस्या हो सकती है।