दिवाली पर पटाखे जलाना इस पर्व का एक पारंपरिक हिस्सा रहा है। केवल दिवाली ही नहीं बल्कि आज ज्यादातर उत्सवों में आतिशबाजी का नजारा देखने को मिलता है। आतिशबाजी (Fireworks) विभिन्न प्रकार के होते हैं जिनमें पटाखे, फुलझड़ियां और हवाई गोले आदि शामिल हैं। हालांकि इन सभी पटाखों में कुछ विशेषताएं एक समान होती हैं लेकिन दूसरी तरफ ये एक-दूसरे से थोड़ा अलग तरीके से कार्य करते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ये पटाखे काम कैसे करते हैं? अगर हां तो ये लेख आपकी सभी जिज्ञासाओं को दूर करने का प्रयास करेगा।
कैसे कार्य करते हैं पटाखें?
फुलझड़ी में केमिकल मिश्रण होता है जिसे एक कठोर छड़ी या तार पर ढाला जाता है। फिर इन रसायनों को अक्सर पानी के साथ मिलाकर एक घोल बनाया जाता है जिसे एक तार पर लेपित किया जा सकता है या एक ट्यूब में डाला जा सकता है। एक बार जब मिश्रण सूख जाए, तो आपके पास भी एक फुलझड़ी उपलब्ध होगी। स्टील, जस्ता या मैग्नीशियम धूल या गुच्छे चमकदार, झिलमिलाती चिंगारी पैदा करते हैं।
रॉकेट कैसे करता है काम?
हम सभी जानते हैं कि पटाखों की श्रेणी में केवल फुलझड़ी ही नहीं ब्लिक स्काई-शूटर और रॉकेट भी आते हैं। कुछ मॉर्डन पटाखे गनपाउडर की मदद से लॉन्च किया जाता है और इलेक्ट्रॉनिक टाइमर का उपयोग करके विस्फोट किया जाता है। हालांकि अधिकांश हवाई गोले या रॉकेट बारूद का उपयोग करके लॉन्च और विस्फोट करते हैं।
पटाखों में कैसे आता है रंग?
आतिशबाजी का रंग मेटल साल्ट से आता है। मेटल साल्ट मूल रूप से आतिशबाजी में गर्म होने पर प्रकाश उत्सर्जित करते हैं। उदाहरण के लिए, स्ट्रोंटियम साल्ट लाल आतिशबाजी बनाते हैं, जबकि तांबा और बेरियम लवण नीले और हरे रंग का उत्पादन करते हैं।