अमरावती- नीति आयोग की रिपोर्ट से मिली जानकारी किसान आत्महत्याओं के लिए कुख्यात रहनेवाला यवतमाल जिला विदर्भ क्षेत्र में सर्वाधिक गरीब रहने की जानकारी नीति आयोग की रिपोर्ट के जरिये सामने आयी है. राज्य की सूची में यवतमाल जिला छठवें स्थान पर है. वहीं वाशिम नौवे व मरोती दसवें स्थान पर है गरीबी निर्मूलन के लिए चलायी जानेवाली सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में त्रुटीं रहने के चलते यह स्थिति रहने का आरोप इस जरिये लगाया जा रहा है.
नीति आयोग ने वर्ष 2011 की जनगणना तथा वर्ष 2019-20 में हुए पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आधार पर देश में गरीबी का निर्देशांक घोषित किया. इसमें दशाई गई गरीबी प्रति व्यक्ति आय पर आधारित नहीं बल्कि उपलब्ध घर, बिजली कनेक्शन, जलापूर्ति व्यवस्था, घरेलू गैस की व्यवस्था, स्वास्थ्य सुविधा, शिक्षा सुविधा एवं मृत्युदर ऐसे विविध मानकों के आधार पर निर्देशांक निश्चित किया गया है, नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार पिछले दस वर्षों के दौरान गरीबी रेखा से नीचे यानी बीपीएल में रहनेवाले नागरिकों की संख्या कम नहीं हुई है. यवतमाल जिले का निर्देशांक सर्वाधिक 23.54 फीसद रहने के चलते पता चलता है कि, आज भी इस जिले में बड़े पैमाने पर लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे है. इसके बाद वाशिम, गडचिरोली, गोंदिया, बुलडाणा, अकोला, अमरावती, वर्धा, भंडारा व नागपुर जिले का नंबर लगता है इसमें भी नागपुर, भंडारा तथा वर्षा जिलों को छोड़कर अन्य सभी जिलों का निर्देशांक दो अंकों में है, जिसका सीधा मतलब है कि इन सभी जिलों में स्कुल, दवाखाने घरकुल व जलापूर्ति जैसी मुलभूत सुविधाओं के लिए सरकारी योजनाओं को और भी अधिक प्रभावी तरीके से चलाये जैसे की जरूरत है.
जितानिहाय स्थिति (निर्देशांक प्रतिशत में)
- यवतमाल 23.54
- वाशिम 22.53
- गडचिरोली- 20.58
- गोंदिया 18.75
- बुलढाणा- 18.22
- चंद्रपुर- 17.65
- अकोला- 13.38
- अमरावती 12.24
- वर्धा-8.82
- भंडारा 8.19
- नागपुर 6.72
नंदूरबार में स्थिति बिकट
नीति आयोग के गरीबी निर्देशांक में महाराष्ट्र के जिलों में से नंदूरबार जिले की स्थिति सबसे अधिक बिकट है जिसका निर्देशांक 52.12 फीसद है. यानी यहां पर जीवन-यापन हेतु तमाम मुलभूत सुविधाओं का नितांत अभाव है. इसके पश्चात चुतिया, जालना, हिंगोली व नांदेड का नंबर आता है. वही दूसरी ओर मुंबई में 359 व पुणे में 5.29 फीसद निर्देशांक रहने के चलते इन दोनों जिलों में गरीबी को लेकर विशेष चिंतावाली बात नहीं है.
योजनाओं की असफलताएं है जिम्मेदार विदर्भ क्षेत्र के गोंदिया, चंद्रपुर व गडचिरोली जैसे जिले नक्सलवाद से प्रभावित है. जहां बड़ी संख्या में आदिवासी समाज की है और इन जिलों के ग्रामीण इलाकों में नालवादियों द्वारा सरकारी मशिनरी को ही नहीं करने दिया जाता. ऐसे में इन जिलों के ग्रामीण इलाकों में आज भी रास्ते पेयजल, शिक्षा, रोजगार व चिकित्सा की सुविधाएं उपलब्ध नहीं है परिणाम स्वरूप इन इलाकों से बड़े पैमाने पर युवाओं का पलायन होता है, जिसके चलते क्षेत्र में गरीबी यथावत है, वहीं यवतमाल जिला विगत लंबे समय से किसान आत्महत्या जैसी समस्या से ग्रस्त है और तमाम राहत पैकेजों व योजनाओं के बावजूद भी इस जिले में किसान आत्महत्याओं का सिलसिला नहीं रुक रहा. जिसका सीधा मतलब है कि सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में कहीं न कहीं कोई खामी जरूर है, साथ ही यह भी स्पष्ट हो गया है कि विदर्भ क्षेत्र के आदिवासी बहुत व किसान आत्महत्याग्रस्त क्षेत्रों के साथ-साथ नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विकासकामों को लेकर सरकारी महकमों द्वारा अब तक केवल कागजी घोडे दोडाये जा रहे है.