नोट में कहा गया है, ‘टैरिफ को लेकर सिफारिश देर से होती है और ज्यादातर बार ऐसा देखा गया है कि राज्य विद्युत नियामक आयोग (SERC) समय से इस पर कदम नहीं उठाता… कई एसईआरसी ऐसे टैरिफ सेट करते हैं जो खर्चे में दिखाई नहीं देते हैं। यह अंतर रेवेन्यू गैप या रेगुलेटरी एसेट्स के तौर पर दिखता है। यह निरर्थक है क्योंकि वितरण कंपनियां उसे रिकवर नहीं कर सकती हैं।’
राज्यों का हाल
सब्सिडी के पैसे में भी देरी
नोट में साफ कहा गया है कि राज्य ग्राहकों को विभिन्न श्रेणियों में सब्सिडी की घोषणा करते हैं और वितरण कंपनियों को उसी हिसाब से छूट वाली दर पर बिजली आपूर्ति का निर्देश दिया जाता है। हालांकि राज्य की ओर से समय पर उस सब्सिडी का पूरा पैसा नहीं दिया जाता।
बिजली वितरण कंपनियों के खस्ताहाल होने की 5 वजहें
2. घाटे से कर्ज बढ़ता है और ब्याज ज्यादा देना पड़ता है।
3. सरकारी विभागों का बकाया भी बढ़ता जाता है। कुल मिलाकर देखें तो इनका 59,489 करोड़ रुपये बकाया है। इसमें सबसे खराब स्थिति में तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक हैं।
4. बिलिंग और कलेक्शन एक बड़ी समस्या है।
5. सब्सिडी दी जाने लगती है लेकिन राज्यों की ओर से भुगतान में काफी देर होती है।