
अकोला| दैनिक दिव्य हिन्दी | अकोला महानगरपालिका चुनाव के नामांकन पत्र दाखिल करने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, लेकिन शहर में अब तक वैसा चुनावी उत्साह देखने को नहीं मिल रहा है, जैसा आमतौर पर मनपा चुनावों के दौरान नजर आता है। नामांकन प्रक्रिया जारी रहने के बावजूद राजनीतिक गतिविधियां फिलहाल सतह पर शांत दिखाई दे रही हैं।
हालांकि अंदरखाने सियासी समीकरण तेजी से बदलते नजर आ रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी और शिंदे गुट की युति फिलहाल बरकरार है, जबकि तीसरी आघाड़ी के सक्रिय होने के संकेत पहले जरूर मिले थे, लेकिन सूत्रों के अनुसार राज्य भाजपा के वरिष्ठ नेताओं की रणनीति के चलते अकोला की तीसरी आघाड़ी से जुड़े कुछ प्रमुख नेताओं को पुनः भाजपा में समायोजित करने का प्रयास काफी हद तक सफल चूका है।
विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि शनिवार को अकोला में राज्य के एक बड़े भाजपा मंत्री की मौजूदगी में पार्टी से निष्कासित किए गए कुछ पदाधिकारियों की पुनः भाजपा में “घर वापसी” होने जा रही है। इस घटनाक्रम के बाद अकोला की राजनीति में नया मोड़ आने की संभावना जताई जा रही है।
“इधर, भाजपा और शिवसेना (शिंदे गुट) के बीच सीट बंटवारे को लेकर चर्चाएं तेज़ हो गई हैं। सूत्रों के मुताबिक, भाजपा की ओर से शिंदे गुट के लिए शहर की 12 सीटें छोड़े जाने की संभावना जताई जा रही है, जबकि शिवसेना (शिंदे गुट) की ओर से 18 सीटों की मांग रखी गई थी। इस समीकरण के चलते स्थानीय कार्यकर्ताओं में असंतोष साफ़ झलक रहा है, जिन्हें अपने साथ अन्याय होता हुआ प्रतीत हो रहा है। वे इस स्थिति से असंतोष में नज़र आ रहे हैं. उनके वरिष्ठो की भूमिका पर पुरे जिले की नजरे टिकी हुई है.
राजनीतिक हलकों में यह भी अटकलें लगाई जा रही हैं कि अंतिम समय में समीकरण बदल सकते हैं या युति को लेकर तनाव बढ़ सकता है, लेकिन फिलहाल दोनों दलों के शीर्ष नेतृत्व की ओर से गठबंधन तोड़ने के कोई संकेत नहीं हैं।
इन सभी राजनीतिक समीकरणों के बीच यह तथ्य भी उभरकर सामने आया है कि इस बार अपक्ष उम्मीदवार कई सीटों पर गणित बिगाड़ने की क्षमता रखते हैं। वहीं, सूत्रों के अनुसार कुछ नेताओं द्वारा इन अपक्ष उम्मीदवारों को परोक्ष रूप से रसद और समर्थन मुहैया कराए जाने की चर्चा भी ज़ोर पकड़ रही है, जिससे चुनावी मुकाबला और अधिक रोचक हो जायेगा
उधर, नामांकन प्रक्रिया को लेकर समय बेहद कम बचा है। अब फॉर्म भरने के लिए केवल तीन दिन शेष रह गए हैं। ऐसे में सीट बंटवारे पर जल्द फैसला नहीं हुआ, तो महायुती के लिए भीतरघात और बगावत बड़ी चुनौती बन सकती है।



