मुंबई- जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती है हमारे दिमाग में भी उसी के हिसाब से बदलाव आते हैं। हम अक्सर सोचते हैं कि हमारा दिमाग बचपन में विकसित होता है और फिर धीरे-धीरे बूढ़ा होता है. लेकिन यह सच नहीं है. सच तो यह है कि आपका दिमाग शांत नहीं बैठताइसी से जुड़ी एक रिसर्च में पता चला है कि व्यक्ति का दिमाग चार मुख्य स्टेजेस से गुजरता है।हमारा दिमाग जीवन भर एक जैसा नहीं रहता। यह लगातार विकसित और बदलता रहता है। वह जिंदगी के कुछ खास मोड़ों पर भयानक तरीके से बदलता है. यूनाइटेड किंगडम की कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के न्यूरोसाइंटिस्ट्स ने एक ऐसा खुलासा किया है जिसने विज्ञान की दुनिया में तहलका मचा दिया है.
उन्होंने इंसान की पूरी जिंदगी में दिमाग के ढांचे के 5 बड़े चरण खोज निकाले हैं. ये चरण तब आते हैं जब हमारा दिमाग सोचने के नए तरीकों को सपोर्ट करने के लिए खुद को ‘रिवायर’ करता है. इस स्टडी में 3,802 लोगों के दिमाग का एमआरआई (MRI) डिफ्यूजन स्कैन किया गया, जिनकी उम्र 0 से 90 साल के बीच थी. नतीजों ने साबित कर दिया कि जन्म से लेकर मौत के बीच 4 ऐसे खतरनाक टर्निंग पॉइंट्स आते हैं जब आपका दिमाग पूरी तरह बदल जाता है. ये उम्र हैं- 9 साल, 32 साल, 66 साल और 83 साल.
दिमाग के जीवनभर के चार स्टेज-
- बचपन से किशोरावस्था का स्टेज (9 साल की उम्र)-
- पहला बड़ा झटका दिमाग को 9 साल की उम्र में लगता है. जन्म से लेकर शुरुआती बचपन तक, दिमाग का काम ‘नेटवर्क कंसोलिडेशन’ यानी जुड़ाव को पक्का करना होता है.
- एक बच्चे के दिमाग में न्यूरॉन्स के बीच बहुत सारे कनेक्टर होते हैं जिन्हें सिनैप्स कहते हैं. 9 साल की उम्र तक आते-आते दिमाग इन एक्स्ट्रा सिनैप्स को काट छांट कर कम कर देता है.
- जो सिनैप्स ज्यादा एक्टिव होते हैं, सिर्फ वही बचते हैं और बाकी खत्म हो जाते हैं. यह प्रक्रिया ठीक वैसी है जैसे एक माली झाड़ियों को काटकर उसे शेप देता है. इस दौरान दिमाग का ग्रे और व्हाइट मैटर तेजी से बढ़ता है.
- 9 साल की उम्र एक ऐसा टर्निंग पॉइंट है जहां बच्चे की सोचने-समझने की क्षमता (Cognitive Capacity) बदलती है. लेकिन सावधान रहें, यही वह समय है जब मानसिक स्वास्थ्य विकारों (Mental Health Disorders) का खतरा भी सबसे ज्यादा बढ़ जाता है.
2. मेच्योरिटी और स्थिरता का दौर (32 साल की उम्र)-
- अगर आपको लगता है कि 18 साल में आप बालिग हो गए हैं, तो आपका दिमाग आपसे सहमत नहीं है. वैज्ञानिकों के मुताबिक, 30 के दशक की शुरुआत में दिमाग की वायरिंग ‘एडल्ट मोड’ में शिफ्ट होती है.
- 32 साल की उम्र इंसान की जिंदगी का सबसे ताकतवर और महत्वपूर्ण टर्निंग पॉइंट है. टीम का कहना है कि यह पूरे जीवनकाल का ‘स्ट्रॉन्गेस्ट टोपोलॉजिकल टर्निंग पॉइंट’ है.
- डॉ. एलेक्सा मूसली के मुताबिक, 32 साल की उम्र के आसपास दिमाग की वायरिंग में सबसे ज्यादा दिशात्मक बदलाव होते हैं. किशोरावस्था (Adolescence) के लक्षण दिमाग में 32 की उम्र तक रहते हैं. इस उम्र में व्हाइट मैटर का वॉल्यूम बढ़ता रहता है और कम्यूनिकेशन नेटवर्क सबसे बेहतरीन हो जाते हैं.
- यह वह समय है जब आपकी सोचने की क्षमता और कॉग्निटिव परफॉरमेंस अपने चरम (Peak) पर होती है. इसके बाद अगले 3 दशक तक दिमाग स्थिर (Stable) रहता है, जिसे बुद्धिमत्ता और व्यक्तित्व का ‘पठार’ (Plateau) कहा जाता है.
3. वृद्धावस्था की शुरुआत (66 साल की उम्र)
- अगले 30 साल की शांति के बाद, 60 के दशक के मध्य में फिर एक तूफान आता है. 66 साल की उम्र वह टर्निंग पॉइंट है जो ‘अर्ली एजिंग’ यानी शुरुआती बुढ़ापे का संकेत देता है.
- हालांकि यह बदलाव बहुत बड़ा नहीं होता, लेकिन यह बहुत मायने रखता है. डेटा बताता है कि ब्रेन नेटवर्क का पुनर्गठन (Reorganisation) 60 के दशक के मध्य में पूरा होता है.
- यह उम्र बढ़ने से जुड़ा है. इस दौरान व्हाइट मैटर का क्षरण (Degeneration) शुरू हो जाता है, जिससे कनेक्टिविटी कम होने लगती है.
- यह वही उम्र है जब लोगों को हाइपरटेंशन जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है, जिसका सीधा असर दिमाग की सेहत पर पड़ता है. यानी 66 साल की उम्र में दिमाग खुद को बुढ़ापे के लिए तैयार कर रहा होता है और कमजोर पड़ने लगता है.
4. लेट एजिंग (83 साल की उम्र)-
- दिमाग का आखिरी टर्निंग पॉइंट 83 साल की उम्र में आता है. इसे ‘लेट एजिंग’ फेज कहा जाता है. इस उम्र के लिए डेटा थोड़ा सीमित है, लेकिन जो भी मिला है वह डराने वाला है. इस उम्र की सबसे बड़ी खासियत है, ‘ग्लोबल से लोकल’ की तरफ शिफ्ट होना.
- इसका मतलब है कि पूरे दिमाग की कनेक्टिविटी (Whole brain connectivity) और ज्यादा गिर जाती है. दिमाग के अलग-अलग हिस्से एक-दूसरे से संपर्क करने के बजाय अपने-अपने लोकल एरिया पर निर्भर हो जाते हैं, जबकि बाकी हिस्से धुंधले पड़ने लगते हैं. यह वह समय है जब इंसान की याददाश्त और सोचने की क्षमता तेजी से गिरने लगती है.
यह रिसर्च क्यों जरूरी है? क्या हम बीमारियों को रोक पाएंगे?
यह सिर्फ एक स्टडी नहीं है, बल्कि भविष्य के लिए एक चेतावनी है. कई न्यूरो-डेवलपमेंटल, मेंटल हेल्थ और न्यूरोलॉजिकल बीमारियां इस बात से जुड़ी हैं कि हमारा दिमाग कैसे वायर (Wired) है. दिमाग की वायरिंग में अंतर ही यह तय करता है कि किसी को ध्यान लगाने में दिक्कत होगी, भाषा समझने में परेशानी होगी या याददाश्त जाएगी.इन चरणों को समझने से हमें यह जानने में मदद मिलती है कि कुछ लोगों का दिमाग जीवन के अलग-अलग पड़ावों पर अलग तरह से क्यों विकसित होता है। चाहे वह बचपन में सीखने की समस्या हो या बुढ़ापे में याददाश्त कमजोर होना। इससे भविष्य में दिमाग से जुड़ी बीमारियों के इलाज और बचाव में मदद मिल सकती है।




