नागपुर/अकोला आज के दौर में डीजे के बिना धार्मिक आयोजन या फिर त्योहार अधूरे लगते हैं। तेज़ बीट्स, ऊँची आवाज़ और झूमता हुआ माहौल—युवाओं को खूब भाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यही डीजे की कानफाड़ू आवाज़ मौत का कारण बन सकती है? हाल ही में डॉक्टरों और विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि डीजे और ऊँचे ध्वनि स्तर पर बजता संगीत हार्ट अटैक का ख़तरा बढ़ा देता है।
ध्वनि का शरीर पर असर
जब आवाज़ 80–85 डेसिबल से ऊपर पहुँचती है, तो शरीर तनाव की स्थिति में आ जाता है। तेज़ म्यूज़िक सुनते ही दिमाग और नसों पर दबाव बढ़ता है। शरीर एड्रेनालिन और कॉर्टिसोल जैसे हार्मोन छोड़ता है, जिससे –
- ब्लड प्रेशर अचानक तेज़ी से बढ़ जाता है।
- दिल की धड़कन असामान्य हो जाती है।
- हृदय पर अचानक ज़ोर पड़ता है।
जो लोग पहले से ही हृदय रोग, उच्च रक्तचाप या मधुमेह जैसी बीमारियों से जूझ रहे हैं, उनके लिए यह स्थिति हार्ट अटैक तक पहुँचा सकती है।
वैज्ञानिक चेतावनियाँ
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का मानना है कि 85 डेसिबल से ज़्यादा ध्वनि लंबे समय तक सुनना खतरनाक है।
- शोध बताते हैं कि 100–120 डेसिबल की आवाज़ दिमाग और दिल दोनों पर गहरा दबाव डालती है।
- भारत के कई हृदय रोग विशेषज्ञों ने यह पाया है कि त्योहारी सीज़न में डीजे और पटाखों की आवाज़ से हार्ट अटैक और स्ट्रोक के मामले अचानक बढ़ जाते हैं।
किन लोगों को सबसे अधिक खतरा?
- बुजुर्ग
- दिल के मरीज
- उच्च रक्तचाप वाले लोग
- डायबिटीज़ के मरीज
- तनाव और चिंता से पीड़ित लोग
इनमें से किसी को भी डीजे के पास खड़ा रहना जानलेवा साबित हो सकता है।
सिर्फ दिल ही नहीं, कान भी खतरे में
तेज़ ध्वनि सिर्फ दिल पर असर नहीं डालती, बल्कि कानों को भी स्थायी नुकसान पहुँचाती है। लगातार 100 डेसिबल से ऊपर की आवाज़ कान के पर्दे और नसों को क्षति पहुँचाती है। इसी वजह से कई लोग पार्टी के बाद घंटों तक कानों में सीटी बजने या झनझनाहट महसूस करते हैं।
त्योहारों और शादियों का बदलता माहौल
भारत में पहले शादियों और धार्मिक आयोजनों में शास्त्रीय संगीत, ढोल-ताशे और पारंपरिक गाने गाए जाते थे। आज उनकी जगह ले ली है हज़ारों वाट की साउंड सिस्टम वाली डीजे गाड़ियों ने। माहौल भले ही चकाचौंध हो गया हो, लेकिन इसका असर लोगों की सेहत पर भारी पड़ रहा है। कई बार रातभर बजता डीजे न केवल बीमारों को परेशान करता है बल्कि बच्चों और गर्भवती महिलाओं पर भी नकारात्मक असर डालता है।
कानून क्या कहता है?
सुप्रीम कोर्ट और राज्य सरकारों ने बार-बार यह साफ किया है कि रात 10 बजे के बाद तेज़ आवाज़ में डीजे बजाना गैरकानूनी है। ध्वनि प्रदूषण (Noise Pollution) रोकने के लिए 55 डेसिबल से अधिक आवाज़ की सीमा तय की गई है, लेकिन ज़्यादातर जगहों पर इस पर अमल नहीं होता।
सावधानियां और उपाय
- डीजे का वॉल्यूम 80 डेसिबल से अधिक न हो।
- दिल और रक्तचाप के मरीज डीजे की भीड़ से दूर रहें।
- कानों को बचाने के लिए ईयर प्लग का उपयोग करें।
- आयोजकों को चाहिए कि ध्वनि सीमा का पालन करें और स्वास्थ्य सुरक्षा को प्राथमिकता दें।
- सरकार और प्रशासन को सख्ती से ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण कानून लागू करना चाहिए।
डीजे पर थिरकना, संगीत का आनंद लेना और मस्ती करना स्वाभाविक है। लेकिन यह मस्ती अगर ज़िंदगी पर भारी पड़ जाए तो इसका कोई मतलब नहीं रह जाता। डीजे की तेज़ आवाज़ पल भर का जोश देती है, मगर यही जोश दिल के लिए मौत का कारण बन सकता है। हमें चाहिए कि हम सजग रहें, आवाज़ की सीमा तय करें और त्योहारों की खुशियाँ इस तरह मनाएँ कि किसी की ज़िंदगी पर आफ़त न आए।