अमेरिका H-1B वीजा के लिए अब ₹88 लाख वसूलेगा: पहले ₹6 लाख तक लगते थे

वॉशिंगटन डीसी – अमेरिका अब H-1B वीजा के लिए हर साल एक लाख डॉलर (करीब 88 लाख रुपए) एप्लिकेशन फीस वसूलेगा। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने शनिवार को व्हाइट हाउस में इस ऑर्डर पर साइन किए। अब तक H-1B वीजा की एप्लिकेशन फीस 1 से 6 लाख रुपए तक थी।इसके अलावा ‘ट्रम्प गोल्ड कार्ड’, ‘ट्रम्प प्लेटिनम कार्ड’ और ‘कॉर्पोरेट गोल्ड कार्ड’ जैसी सुविधाएं भी शुरू की गई हैं। ट्रम्प गोल्ड कार्ड (8.8 करोड़ कीमत) व्यक्ति को अमेरिका में अनलिमिटेड रेसीडेंसी (हमेशा रहने) का अधिकार देगा।

ट्रम्प के इन बदलावों का विदेशी नागरिकों पर बहुत ज्यादा असर पड़ सकता है। अब कंपनियां सिर्फ उन्हीं कर्मचारियों को अमेरिका बुला सकेंगी, जिनके पास सबसे अच्छा स्किल होगा। इसका सीधा असर भारतीय IT प्रोफेशनल्स पर पड़ेगा।इस फैसले के बाद माइक्रोसॉफ्ट, जेपी मॉर्गन और अमेजन जैसी कंपनियों ने H-1B वीजा होल्डर कर्मचारियों को अमेरिका में ही रहने की सलाह दी है। रॉयटर्स के मुताबिक बाहर रहने वाले कर्मचारियों को सलाह दी कि वे शनिवार रात से पहले वापस आ जाएं।ट्रम्प ने 19 सितंबर को व्हाइट हाउस में H-1B वीजा को लेकर नियमों में बदलाव से जुड़े ऑर्डर पर साइन किए।

सरकार 80 हजार गोल्ड कार्ड जारी करेगी

अमेरिकी वाणिज्य मंत्री हॉवर्ड लुटनिक ने कहा कि अभी हर साल लगभग 2,81,000 लोगों को ग्रीन कार्ड दिया जाता है, लेकिन इनमें से ज्यादातर की औसत कमाई सिर्फ 66,000 डॉलर (करीब 58 लाख रुपए) होती है और कई बार वे सरकार की मदद पर भी निर्भर रहते हैं।

लुटनिक ने कहा,”सभी कंपनियां H-1B वीजा के लिए सालाना एक लाख डॉलर देने के लिए तैयार हैं। हमने उनसे बात की है। अगर आप किसी को ट्रेनिंग देने जा रहे हैं, तो किसी अमेरिकी यूनिवर्सिटी से निकले ग्रेजुएट को ट्रेनिंग दीजिए। अमेरिकियों को ट्रेनिंग दीजिए। हमारी नौकरियां छीनने के लिए लोगों को बाहर से लाना बंद करिए।”

लुटनिक के मुताबिक गोल्ड कार्ड की भारी फीस यह तय करेगी कि अमेरिका में सिर्फ सबसे योग्य और टॉप क्लास कर्मचारी ही लंबे समय तक टिक सकें। उन्होंने कहा कि ‘यह व्यवस्था पहले अनुचित थी, लेकिन अब हम सिर्फ उन्हीं को लेंगे जो वाकई बहुत काबिल हैं।लुटनिक ने कहा कि यह गोल्ड कार्ड अब तक चल रहे EB-1 और EB-2 वीजा की जगह लेगा। ये कार्ड केवल उन्हीं लोगों को मिलेगा, जो अमेरिका के लिए ‘फायदेमंद’ माने जाएंगे। शुरुआत में सरकार लगभग 80,000 गोल्ड कार्ड जारी करने की योजना बना रही है। लुटनिक ने कहा कि इस प्रोग्राम से अमेरिका को 100 अरब डॉलर की कमाई होगी।

ट्रम्प बोले- सिर्फ टैलेंटेड लोगों को वीजा देंगे

गोल्ड कार्ड की अनलिमिटेड रेसीडेंसी में नागरिकों को सिर्फ पासपोर्ट और वोट देने का अधिकार नहीं मिलता, बाकी सारी सुविधाएं एक अमेरिकी नागरिक के जैसी मिलती हैं। यह प्रक्रिया उसी तरह होगी, जैसे ग्रीन कार्ड के जरिए स्थायी निवास मिलता है।राष्ट्रपति ट्रम्प ने कहा कि यह वीजा प्रोग्राम खास तौर पर धनी विदेशियों के लिए है, ताकि वे 10 लाख डॉलर देकर अमेरिका में रहते हुए काम कर सकें। उन्होंने कहा कि अब अमेरिका सिर्फ टैलेंटेड लोगों को ही वीजा देगा, न कि ऐसे लोगों को जो अमेरिकियों की नौकरियां छीन सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि इस रकम का इस्तेमाल टैक्स को घटाने और सरकारी कर्ज चुकाने में किया जाएगा।

वीजा रिन्यू के लिए हर बार लग सकते हैं 88 लाख रुपए

H-1B वीजा एक एक नॉन-इमिग्रेंट वीजा है। यह वीजा लॉटरी के जरिए दिए जाते रहे हैं क्योंकि हर साल कई सारे लोग इसके लिए आवेदन करते हैं।यह वीजा स्पेशल टेक्निकल स्किल जैसे IT, आर्किटेक्चर और हेल्थ जैसे प्रोफेशन वाले लोगों के लिए जारी होता है।इसकी समय सीमा 3 साल के लिए होती है, लेकिन जरूरत पड़ने पर 3 साल बढ़ाया जा सकता है। रिन्यू करवाने पर फीस (6 लाख तक) के बराबर ही शुल्क ही देना होता था।अब नियमों में बदलाव के बाद वीजा रिन्यू कराने के लिए हर बार 88 लाख रुपए लग सकते हैं। हालांकि, अभी इस पर अंतिम फैसला नहीं आया है।

हर साल 85 हजार H-1B वीजा जारी होते हैं

अमेरिकी सरकार हर साल 85,000 एच-1बी वीजा जारी करती है, जिनका इस्तेमाल ज्यादातर तकनीकी नौकरियों में होता है। इस साल के लिए आवेदन पहले ही पूरे हो चुके हैं।आंकड़ों के अनुसार, केवल अमेजन को ही इस साल 10,000 से ज्यादा वीजा मिले हैं, जबकि माइक्रोसॉफ्ट और मेटा जैसी कंपनियों को 5,000 से अधिक वीजा स्वीकृत हुए हैं।सरकारी आंकड़े बताते हैं कि पिछले साल H-1B वीजा का सबसे ज्यादा फायदा भारत को मिला।

हालांकि इस वीजा कार्यक्रम की आलोचना भी होती है।कई अमेरिकी तकनीकी कर्मचारियों का कहना है कि कंपनियां H-1B वीजा का इस्तेमाल वेतन घटाने और अमेरिकी कर्मचारियों की नौकरियां छीनने के लिए करती हैं।

H-1B वीजा में बदलाव से भारतीयों पर असर

H-1B के नियमों में बदलाव से 2,00,000 से ज्यादा भारतीय प्रभावित होंगे। साल 2023 में H-1B वीजा लेने वालों में 1,91,000 लोग भारतीय थे। ये आंकड़ा 2024 में बढ़कर 2,07,000 हो गई।भारत की आईटी/टेक कंपनियां हर साल हजारों कर्मचारियों को H-1B पर अमेरिका भेजती हैं। हालांकि, अब इतनी ऊंची फीस पर लोगों को अमेरिका भेजना कंपनियों के लिए कम फायदेमंद होगा।71% भारतीय H-1B वीजा धारक हैं और यह नई फीस उनके लिए बड़ा आर्थिक बोझ बन सकती है। खासकर मिड-लेवल और एंट्री-लेवल कर्मचारियों को वीजा मिलना मुश्किल होगा। कंपनियां नौकरियां आउटसोर्स कर सकती हैं, जिससे अमेरिका में भारतीय पेशेवरों के अवसर कम होंगे।

इंफोसिस जैसी कंपनियां सबसे ज्यादा H-1B स्पॉन्सर करती हैं

भारत हर साल लाखों इंजीनियरिंग और कंप्यूटर साइंस के ग्रेजुएट तैयार करता है, जो अमेरिका की टेक इंडस्ट्री में बड़ी भूमिका निभाते हैं। इंफोसिस, TCS, विप्रो, कॉग्निजेंट और HCL जैसी कंपनियां सबसे ज्यादा अपने कर्मचारियों को H-1B वीजा स्पॉन्सर करती हैं।कहा जाता है कि भारत अमेरिका को सामान से ज्यादा लोग यानी इंजीनियर, कोडर और छात्र एक्सपोर्ट करता है। अब फीस महंगी होने से भारतीय टैलेंट यूरोप, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, मिडिल ईस्ट के देशों की ओर रुख करेगा

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