पराबैंगनी किरणों से बचाने वाली ओजोन परत में हो रहा सुधार, त्वचा कैंसर-मोतियाबिंद का खतरा होगा कम

नई दिल्ली- धरती को पराबैंगनी किरणों से बचाने वाली ओजोन परत में धीरे-धीरे सुधार होने लगा है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने हालिया रिपोर्ट में यह जानकारी दी। डब्ल्यूएमओ ने कहा कि पृथ्वी की सुरक्षा करने वाली ओजोन परत इस सदी के मध्य तक 1980 के दशक के स्तर पर लौटने की राह पर है।

प्रदूषण और वायुमंडल में कार्बन की बढ़ती मात्रा के कारण इस लेयर को भारी नुकसान पहुंचा था। रिपोर्ट के अनुसार इस साल ओजोन क्षरण में कमी प्राकृतिक वायुमंडलीय कारकों के कारण आंशिक रूप से हुई, लेकिन दीर्घकालिक सुधार वैश्विक कार्रवाई की सफलता को दर्शाता है। रिपोर्ट में कहा गया कि विएना कन्वेंशन और उसका मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल बहुपक्षीय सफलता का मील का पत्थर बन गया। आज ओजोन परत ठीक हो रही है। यह उपलब्धि हमें याद दिलाती है कि जब राष्ट्र विज्ञान की चेतावनियों पर ध्यान देते हैं, तो प्रगति संभव है।
मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल ने पहले ही 99 फीसदी से अधिक नियंत्रित ओजोन-क्षयकारी पदार्थों को चरणबद्ध  तरीके से समाप्त कर दिया है। इनका उपयोग कभी प्रशीतन, एयर कंडीशनिंग, अग्निशमन फोम और हेयरस्प्रे में व्यापक रूप से किया जाता था। डब्ल्यूएमओ ने कहा कि परिणामस्वरूप, ओजोन परत सदी के मध्य तक 1980 के स्तर तक पहुंच जाएगी जिससे त्वचा कैंसर, मोतियाबिंद और पारिस्थितिकी तंत्र  को होने वाले नुकसान का खतरा कम हो जाएगा।

बड़ी सफलता के बावजूद अभी भी बाकी हैं कई काम

ओजोन और सौर यूवी विकिरण पर डब्ल्यूएमओ के वैज्ञानिक सलाहकार समूह के अध्यक्ष मैट टली ने कहा, बीते दशकों में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल की बड़ी सफलता के बावजूद यह कार्य अभी समाप्त नहीं हुआ है। दुनिया के लिए समताप मंडलीय ओजोन तथा ओजोन परत को क्षति पहुंचाने वाले पदार्थों और उनके विकल्पों की व्यवस्थित निगरानी जारी रखना अभी भी जरूरी है।

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