मुंबई – भारतीय मौसम विभाग ने मंगलवार को बताया कि इस बार जून से सितंबर तक मानसून सामान्य से बेहतर रहेगा। मौसम विभाग 104 से 110 फीसदी के बीच बारिश को सामान्य से बेहतर मानता है। यह फसलों के लिए अच्छा संकेत है।IMD के प्रमुख मृत्युंजय महापात्रा ने बताया कि 2025 में 105% यानी 87 सेंटीमीटर बारिश हो सकती है। 4 महीने के मानसून सीजन के लिए लॉन्ग पीरियड एवरेज (LPA) 868.6 मिलीमीटर यानी 86.86 सेंटीमीटर होता है। यानी मानसून सीजन में कुल इतनी बारिश होनी चाहिए।
मानसून 1 जून के आसपास केरल के रास्ते आता है। 4 महीने की बरसात के बाद यानी सितंबर के अंत में राजस्थान के रास्ते मानसून की वापसी होती है। कई राज्यों में यह 15 से 25 जून के बीच पहुंचता है।
वर्षा का प्रतिशत कैसे गणना किया जाता है?
– मौसम विभाग ने वर्षा की तीव्रता की पांच श्रेणियां निर्धारित की हैं।
– 90 प्रतिशत से कम वर्षा – अपर्याप्त वर्षा
– 90 से 95 प्रतिशत – औसत से कम वर्षा
– 96 से 104 प्रतिशत – औसत वर्षा
– 105 से 110 प्रतिशत – औसत से अधिक वर्षा
– 110 प्रतिशत से अधिक – सर्वाधिक वर्षा
IMD चीफ बोले- हीटवेव्स के दिन मई-जून में बढ़ेंगे
IMD चीफ ने कहा कि इस साल अल नीनो की स्थितियां नहीं बनेंगी। देश के कई हिस्सों में अभी भीषण गर्मी पड़ रही है। अप्रैल और जून में हीटवेव्स दिनों की संख्या में इजाफा होगा। इससे पावर ग्रिड पर प्रेशर बढ़ेगा और पानी की कमी होगी।देश का 52 फीसदी खेतिहर इलाका मानसून पर निर्भर करता है। मानसून में पानी के स्रोतों की कमी पूरी होती है। ऐसे में सामान्य मानसून बड़ी राहत की खबर है। मौसम विज्ञानियों का कहना है कि अब मानसून में बारिश के दिनों की कमी हो रही है और भारी बारिश की बढ़ोतरी हो रही है। इससे लगातार सूखा और बाढ़ के हालात बन रहे हैं।
अल नीनो क्या होता है
अल नीनो एक जलवायु पैटर्न है। इसमें समुद्र का तापमान 3 से 4 डिग्री बढ़ जाता है। इसका प्रभाव 10 साल में दो बार होता है। इसके प्रभाव से ज्यादा बारिश वाले क्षेत्र में कम और कम बारिश वाले क्षेत्र में ज्यादा बारिश होती है। भारत में अल नीनो के कारण मानसून अक्सर कमजोर होता है। जिससे सूखे की स्थिति बनती है।
इकोनॉमी के लिए अच्छी बारिश जरूरी
देश में सालभर में होने वाली कुल बारिश का 70% पानी मानसून के दौरान ही बरसता है। देश में 70% से 80% किसान फसलों की सिंचाई के लिए बारिश पर ही निर्भर हैं। यानी मानसून के अच्छे या खराब रहने से पैदावार पर सीधा असर पड़ता है। अगर मानसून खराब हो तो फसल कम पैदा होती है, जिससे महंगाई बढ़ सकती है।भारतीय अर्थव्यवस्था में एग्रीकल्चर सेक्टर की हिस्सेदारी करीब 20% है। वहीं, देश की आधी आबादी को कृषि क्षेत्र ही रोजगार देता है। अच्छी बारिश का मतलब है कि खेती से जुड़ी आबादी को फेस्टिव सीजन से पहले अच्छी आमदनी हो सकती है। इससे उनकी खर्च करने की क्षमता बढ़ती है, जो इकोनॉमी को मजबूती देती है।
2020 से 2024 के बीच 5 सालों में सिर्फ एक बार स्काईमेट का अनुमान सही साबित हुआ। 2023 में स्काईमेट ने 94% बारिश का अनुमान लगाया था और उस साल इतनी ही बारिश हुई। IMD का अनुमान 2% कम रहा। 2021 में IMD ने 98% का अनुमान लगाया और बारिश लगभग बराबर (99%) हुई। वहीं 2020 और 2022 में स्काईमेट और IMD दोनों का पूर्वानुमान एक्चुअल बारिश से कम या ज्यादा ही रहा।
केंद्र सरकार की अर्थ साइंस मिनिस्ट्री ने देश में सामान्य बारिश के लॉन्ग पीरियड एवरेज (LPA) को साल 2022 में अपडेट किया। इससे अनुसार 87 सेंटीमीटर बारिश को सामान्य माना जाता है। 2018 में यह 88 सेंटीमीटर था। LPA में चार फीसदी घट-बढ़ को सामान्य माना जाता है।