महामृत्युंजय मंत्र भगवान शिव के सबसे प्रमुख मंत्रों में से एक माना जाता है। भगवान शिव को शास्त्रों में मृत्यु का देवता भी कहा जाता है। इसलिए, महामृत्युंजय मंत्र यानी मृत्यु पर विजय का मंत्र कहा जाता है। महामृत्युंजय मंत्र का सिर्फ धार्मिक महत्व नहीं है, अगर स्वर विज्ञान के हिसाब से देखा जाए तो महामृत्युंजय मंत्र के अक्षरों का स्वर के साथ उच्चारण किया जाए तो शरीर में जो कंपन होता है, वो हमारे शरीर की नाड़ियों को शुद्ध करने और तेज करने में मदद करता है।
इसके पीछे सिर्फ धर्म नहीं है, इसके पीछे पूरा स्वर सिद्धांत है। इसे संगीत का विज्ञान भी कहा जाता है। महामृत्युंजय मंत्र की शुरुआत ऊँ अक्षर से होती है। इसका लंबे स्वर और गहरी सांस के साथ उच्चारण किया जाता है। इसी तरह पूरे मंत्र को पढ़ा जाता है। बार-बार दोहराया जाता है। इससे शरीर में मौजूद सूर्य और चंद्र नाड़ियों में कंपन उत्पन्न होता है। हमारे शरीर में मौजूद सप्तचक्रों के आसपास एनर्जी का संचार होता है। ये संचार ही मंत्र पढ़ने वाले और सुनने वाले के शरीर पर भी होता है। नाड़ियों और चक्रों में जो ऊर्जा का संचार होता है। इन चक्रों के कंपन से शरीर में शक्ति आती है, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। इस तरह लंबे स्वर और गहरी सांस के साथ जाप करने से बीमारियों से जल्दी मुक्ति मिलती है।
इस तरह किया जाता है महामृत्युंजय मंत्र का जाप
रोज रुद्राक्ष की माला से इस मंत्र के 108 जप करने से अकाल मृत्यु (असमय मौत) का डर दूर होता है। साथ ही कुंडली के दूसरे बुरे रोग भी शांत होते हैं, इसके अलावा 8 तरह के दोषों का नाश करके, सुख भी इस मंत्र के जाप से मिलते हैं।
ये है महामृत्युंजय मंत्र
ऊँ त्र्यंबकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टिवर्द्धनम्, ऊर्वारुकमिव बन्धनात, मृत्योर्मुक्षियमामृतात्।।
अर्थ – हम त्रिनेत्र भगवान शिव का मन से स्मरण करते हैं। आप हमारे जीवन की मधुरता को पोषित और पुष्ट करते हैं। जीवन और मृत्यु के बंधन से मुक्त होकर अमृत की ओर अग्रसर हों।
कुंडली के इन दोषों का करता है नाश
महामृत्युंजय मंत्र का जप करने से हमारी कुंडली के मांगलिक दोष, नाड़ी दोष, कालसर्प दोष, भूत-प्रेत दोष, रोग, दुःस्वप्न, गर्भनाश, संतानबाधा कई दोषों का नाश होता है।
महामृत्युंजय मंत्र के जाप में रखें ये सावधानियां
1. महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते समय तन यानी शरीर और मन बिल्कुल साफ होना चाहिए। यानी किसी तरह की गलत भावना मन में नहीं होनी चाहिए।
2. मंत्र का जाप उच्चारण ठीक ढंग से करना चाहिए। अगर स्वयं मंत्र न बोल पाएं तो किसी योग्य पंडित से भी इसका जाप करवाया जा सकता है।
3. मंत्र का जाप निश्चित संख्या में करना चाहिए। समय के साथ जाप संख्या बढ़ाई जा सकती है।
4. भगवान शिव की मूर्ति या चित्र के सामने बैठकर अथवा महामृत्युंजय यंत्र के सामने ही इस मंत्र का जाप करना चाहिए।
5. मंत्र जाप के दौरान पूरे समय धूप-दीप जलते रहना चाहिए। इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
6. इस मंत्र का जाप केवल रुद्राक्ष माला से ही करना चाहिए। बिना आसन के मंत्र जाप न करें।
7. इस मंत्र का जाप पूर्व दिशा की ओर मुख करके करना चाहिए। निर्धारित स्थान पर ही रोज मंत्र जाप करें।
महामृत्युंजय मंत्र का विज्ञान: इस मंत्र के जाप से मानसिक शांति और एकाग्रता बढ़ती है
- 2011 में इंटरनेशनल जर्नल ऑफ योगा में छपे शोध के मुताबिक महामृत्युंजय मंत्र के नियमित जाप से मानसिक शांति और एकाग्रता बढ़ती है।
- 2013 में महामृत्युंजय मंत्र पर इलेक्ट्रोएन्सेफलोग्राफी टेस्ट किया। इस स्टडी में पता चला कि महामृत्युंजय मंत्र बोलने से दिमाग में अल्फा और थीटा तरंगे बढ़ती हैं। जिससे मानसिक शांति मिलती है।
- जर्नल ऑफ अल्टरनेटिव एंड कॉम्प्लिमेंट्री मेडिसिन में छपे शोध के अनुसार मंत्र जाप से शारीरिक सेहत में सुधार होता है।
- 2003 में दिमाग के हिस्सों की एक्टीविटी जांचने वाले फंक्शनल इमेजिंग टेस्ट की मदद से स्टडी की गई। जिसमें पता चला कि मंत्र जाप करने से दिमाग के अगले हिस्से यानी प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स में सक्रियता बढ़ जाती है। जिससे मानसिक शांति और ध्यान करने में मदद मिलती है।
- 2019 में राममनोहर लोहिया हॉस्पिटल में हुई स्टडी से पता चला कि महामृत्युंजय मंत्र जाप से तनाव बढ़ाने वाला कॉर्टिसोल हार्मोन कम होने लगता है। इस मंत्र से दिल की सेहत भी अच्छी रहती है।