IIVR वाराणसी में अब सब्जियों के रस से बनेंगे कॉस्मेटिक प्रोडक्ट

वाराणसी -चुनार अदलपुरा स्थित भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान (आईआईवीआर) में किसानों के लिए एक बड़ी सुविधा की शुरुआत की गई है. संस्थान के कार्यकारी निदेशक डॉ. नागेंद्र राय ने जैव संसाधन मूल्यवर्धन यूनिट का लोकार्पण किया. इस अवसर पर तेलंगाना यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रोफेसर डी. राजी रेड्डी मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद रहे. इस यूनिट का मुख्य उद्देश्य सब्जी फसलों के उत्पादन के उपरांत बाजार न मिलने की स्थिति में फसलों को विविधीकृत उत्पादों के रूप में परिवर्तित करके इन उत्पादों के मूल्यवर्धन को बढ़ावा देना है.

किसानों की आय में होगा इजाफा

संस्थान के कार्यकारी निदेशक डॉ नागेंद्र राय ने बताया कि आमतौर पर समय से पूर्व या बाद में फसलों के बाजार में आने से किसानों को उचित मूल्य नहीं मिल पाता है, जिसके चलते किसानों की फसल बर्बाद होती है और अत्यधिक नुकसान उठाना पड़ता है. नतीजा किसानों को आर्थिक रूप से उठाना पड़ता है और साथ ही फसलें सड़-गल जाती हैं. उन्होंने कहा कि ऐसे में जैवसंसाधन मूल्यवर्धन के जरिए फसल अवशेषों के विविध उत्पादों में परिवर्तित किया जाना एक सार्थक कदम है.

सब्जियों के रस से बनेंगे कई प्रोडक्ट्स

मुख्य अतिथि डॉ रेड्डी ने कहा कि किसानों की फसलों को अनिच्छित नुकसान से बचाने हेतु इस तरह के उपायों की बड़ी आवश्यकता है. इस अवसर पर परियोजना समन्वयक डॉ राजेश कुमार ने कहा कि सब्जी फसलें हमेशा ही जल्दी खराब हो जाती हैं, अतः उन्हें विभिन्न उत्पादों के रूप में परिवर्तित कर देने से उन्हें बर्बादी से बचाया जा सकता है.

सब्जी फसलों के मूल्यवर्धन उत्पादों पर विगत कई वर्षों से कार्यरत प्रधान वैज्ञानिक डॉ डीपी सिंह ने बताया कि संस्थान में  सब्जी फसलों को लंबे समय तक बाजार में उपलब्ध रहने वाले उत्पादों के रूप में विकसित किये जाने की तकनीक विकसित की गई है, जिनमें सब्ज़ियों के फलों के रस से कॉस्मेटिक और स्वच्छता में काम आने वाले उत्पाद बनाये जा रहे हैं.

जीरो वेस्ट सिद्धांत पर काम करेगी यूनिट

जैव संसाधन मूल्यवर्धन इकाई जीरो वेस्ट सिद्धांत पर काम करेगी जिसमें सब्जी फलों के रसों में अत्यधिक रूप से पाए जाने वाले विटामिन, मिनरल, एवं एंटीऑक्सीडेंट रसायनों आदि से युक्त एक्सट्रेक्ट का उपयोग क्लीनिंग एवं सौंदर्यीकरण उत्पादों को बनाने में किया जा रहा है. साथ ही निकलने वाले अवशेष को पाउडर बनाकर विभिन्न फीड के तौर पर उपयोग किया जा रहा है. इसी दिशा मे कार्य कर रहे प्रधान वैज्ञानिक डॉ सुदर्शन मौर्या ने कहा कि मुशरूम उत्पादों पर भी कार्य कियाजा रहा है.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here