सिंघाड़ा तालाबों में पैदा होने वाली एक नगदी फसल है। मध्यप्रदेश में सिंघाड़े की खेती लगभग 6000 हेक्टेयर में किया जाता है। सिंघाड़े के कच्चे व ताजे फलों का ही उपयोग मुख्यत: किया जाता है इसके अलावा पके फलों को सुखाकर उसकी गोटी से आटा बनाया जाता है जिससे बने व्यंजनों का उपयोग उपवास में किया जाता है।
सिंघाड़े में मुख्य पोषक तत्व प्रोटीन 4.7 प्रतिशत एवं शर्करा 23.3 प्रतिशत होते हैं इसके अलावा इसमें कैल्शियम, फास्फोरस, लोहा, पोटेशियम, तांबा, मैगनीज, जिंक एवं विटामिन सी भी सूक्ष्म मात्रा में उपलब्ध होते हैं।सामान्यत: तालाबों में होने वाले सिंघाड़े की फसल की खेती उन्नत कृषि तकनीक अपनाकर निचले खेतों जिनमें पानी का भराव जुलाई से नवम्बर – दिसम्बर माह तक लगभग एक से दो फीट तक होता है आसानी से की जा सकती है। इस तकनीक को अपनाकर खासकर धान के क्षेत्र जैसे बालाघाट, सिवनी आदि के कृषक निचले खेतों में अपनी उपज में प्रति एकड़ डेढ़ गुना वृद्धि कर सकते हैं।
सिंघाड़े की खेती उष्ण कटिबन्धीय जलवायु वाले क्षेत्रों में की जाती है। इसकी खेती के लिए खेत में एक से दो फीट पानी की आवश्यकता होती है। इसकी खेती स्थिर जल वाले खेतों में की जाती है साथ ही साथ खेतों में ह्युमस की मात्रा अच्छी होनी चाहिये। सिंघाड़ा उत्पादन हेतु दोमट या बलुई दोमट मिट्टी जिसका पी. एच. 6.0 से 7.5 तक होता है अधिक उपयुक्त होती है।
सिंघाड़ा किस्में
सिंघाड़े मेंं कोई उन्नत जाति विकसित नहीं की गई हैं परन्तु जो किस्म प्रचलित है उनमें जल्द पकने वाली जातियां हरीरा गठुआ, लाल गठुआ, कटीला, लाल चिकनी गुलरी, किस्मों की पहली तुड़ाई रोपाई के 120 – 130 दिन में होती है। इसी प्रकार देर से पकने वाली किस्में – करिया हरीरा, गुलरा हरीरा, गपाचा में पहली तुड़ाई 150 से 160 दिनों में होती है।
सिंघाड़े की नर्सरी
सिंघाड़े की नर्सरी तैयार करने हेतु दूसरी तुड़ाई के स्वस्थ पके फलों का बीज हेतु चयन करके उन्हे जनवरी माह तक पानी में डुबाकर रखा जाता है। अंकुरण के पहले फरवरी के द्वितीय सप्ताह में इन फलों को सुरक्षित स्थान में गहरे पानी में तालाब या टांकें में डाल दिये जाते है। मार्च माह में फलों से बेल निकलने लगती है व लगभग एक माह में 1.5 से 2 मीटर तक लम्बी हो जाती है। इन बेलों से एक मीटर लंबी बेलों को तोड़कर अप्रैल से जून तक रोपणी का फैलाव खरपतवार रहित तालाब में किया जाता है। रोपणी लगाने हेतु प्रति हेक्टेयर 300 किलोग्राम सुपर फॉस्फेट, 60 किलोग्राम पोटाश व 20 किलोग्राम यूरिया तालाब में उपयोग की जाती है साथ ही साथ रोपणी को कीट एवं रोगों से सुरक्षित रखना अति आवश्यक है। कीट एवं रोगों की रोकथाम हेतु आवश्यकता पडऩे पर उचित कीटनाशी एवं कवकनाशी का उपयोग करें।
फलों की तुडाई
जल्द पकने वाली प्रजातियों की पहली तुड़ाई अक्टूबर के प्रथम सप्ताह में एवं अंतिम तुड़ाई 20 से 30 दिसम्बर की जाती है। इसी प्रकार देर पकने वाली प्रजातियों की प्रथम तुड़ाई नवम्बर के प्रथम सप्ताह में एवं अंतिम तुड़ाई जनवरी के अंतिम सप्ताह तक की जाती हैं। सिंघाड़ा फसल में कुल 4 तुड़ाई की जाती है।तुड़ाई पूर्ण रूप से विकसित पके फलों की ही करना चाहिए, कच्चे फलों की तुड़ाई करने पर गोटी छोटी बनती है एवं उपज भी कम प्राप्त है।
फलों की छिलाई
जिस खेत में रोपाई करनी हो उसमें जुलाई के प्रथम सप्ताह में कीचड़ मचा लिया जाता है।
- रोपाई के पूर्व या एक सप्ताह के अंदर 300 किलोग्राम सुपर फॅास्फेट 60 किलोग्राम पोटाश व 20 किलोग्राम यूरिया प्रति हेक्टेयर मिलाएं साथ ही गोबर की सड़ी खाद का उपयोग अवश्य करें।
- इसके उपरांत रोपाई के पूर्व रोपणी को इमीडाक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत एस. एल. के घोल में 15 मिनट तक डुबोकर उपचारित किया जाता है।
- उपचारित बेल एक मीटर लंबी 2-3 बेलों की गठान लगाकर 131 मीटर के अन्तराल पर अंगूठे की सहायता से कीचड़ में गड़ाकर किया जाता है।
- रोपाई का कार्य जुलाई के प्रथम सप्ताह से 15 अगस्त के पहले तक किया जा सकता है।
- खरपतवार नियंत्रण रोपाई पूर्व व मुख्य फसल में समय – समय पर करते रहना चाहिये।
- कीट एवं रोगों पर सतत निगरानी रखें, प्रारंभिक अवस्था में प्रकोपित पत्तियों को तोड़कर नष्ट करें ताकि कीट एवं रोग नाशियों का उपयोग न करना पड़े। यदि आवश्यकता हो तो उचित दवा का उपयोग करें।
- सिंघाड़ा फल जो अच्छी तरह से सूखे हो उनको सरोते या सिंघाड़ा छिलाई मशीन द्वारा छिला जाता है। इसके उपरांत एक से दो दिनों तक सूर्य की रोशनी में सुखाकर मोटी पॉलीथिन बैग में रखकर पैक कर दिया जाता है।
उपज
हरे फल 80 से 100 क्विंटल/ हेक्टेयर,
सूखी गोटी – 17 से 20 क्विंटल/ हेक्टेयर
कुल लागत – लगभग 45000 रू./ हे.
कुल प्राप्ति लगभग – 150000 रू./ हे.
शुद्ध लाभ – 105000 रू./ हेक्टेयर।
फलों को सुखाना
पूर्ण रूप से पके फलों की गोटी बनाने हेतु सुखाया जाता है। फलों को पक्के खलिहान या पॉलीथिन में सुखाना चाहिए। फलों को लगभग 15 दिन सुखाया जाता है एवं 2 सें 4 दिन के अंतराल पर फलों की उलट पलट की जाती है ताकि फल पूर्ण रूप से सूख सकें। कांटे वाली सिंघाड़े की जगह बिना कांटे वाली किस्मों का चुनाव खेती के लिए करें, ये किस्में अधिक उत्पादन देती है साथ ही इनकी गोटियों का आकार भी बड़ा होता है। एवं खेतों में इसकी तुड़ाई आसानी से की जा सकती है।
थायराइड के मरीज खाएं इसका आटा
जिन महिलाओं की माहवारी नियमित नहीं होती, उन महिलाओं के लिए सिंघाड़े का सेवन करना बेहद लाभदायक माना जाता है. सिंघाड़े में आयोडीन और मैंगनीज पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं. ये थायराइड की समस्या में लाभदायक हैं. इसमें मौजूद आयोडीन गले संबंधी रोगों से बचाता है. अगर आप थायराइड के मरीज हैं, तो आपके लिए सिंघाड़े का सेवन फायदेमंद साबित हो सकता है.
पानी की कमी को करे दूर
यह शरीर में पानी की कमी को दूर करता है. अगर आप कम मात्रा में पानी पीते हैं, तो डिहाइड्रेशन की समस्या हो सकती है. ऐसे में आप इस फल का सेवन कर पानी की कमी को दूर कर सकते हैं. सिंघाड़ा में कैल्शियम पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है. अगर आप इसका सेवन नियमित रूप से करते हैं, तो यह हड्डियां और दांतों को मजबूत करने में सहायक है।
सिंघाड़े का सेवन बालों की समस्या के लिए भी फायदेमंद माना जाता है। इसमें मौजूद लॉरिक एसिड बालों को मजबूत बनाने में मदद करते हैं।
एंटीऑक्सिडेंट का पावरहाउस
सिंघाड़े के आटे में कोलेस्ट्रॉल नहीं होता है और यह आवश्यक पोषक तत्वों और विटामिन से समृद्ध होता है। एक रिसर्च के अनुसार पता चला है, कि यह आटा एंटीऑक्सिडेंट और खनिजों की अपनी गिनती के मामले में भी कम नहीं है। यह आटा विटामिन बी 6, पोटेशियम, तांबा, राइबोफ्लेविन, आयोडीन और मैंगनीज से भरा होता है। आयोडीन और मैंगनीज आपकी थायरॉयड समस्याओं की भी जांच करने में मदद करते हैं। यह आटा एंटीऑक्सिडेंट का पावरहाउस है जो शरीर को स्वस्थ बनाए रखने में मदद करता है।
हड्डियों के लिए अच्छा है
इस आटे में मौजूद कैल्शियम तत्व हड्डियों को मजबूत बनाए रखने में सहायता करते हैं। इसके इस्तेमाल से हड्डियों सम्बन्धी कई समस्याएं जैसे ऑर्थराइटिस का खतरा कम हो जाता है और ये हड्डियों को खोखलेपन से भी बचाता है।स्वास्थ्य संबंधी कई गुणों से भरपूर होने की वजह से सिंघाड़े के आटे को अपनी डाइट का हिस्सा जरूर बनाना चाहिए। लेकिन अन्य कोई स्वास्थ्य समस्या होने पर इसे डाइट में शामिल करने से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।