नई दिल्ली -प्रकृति ने मनुष्य की मानसिक व शारीरिक बीमारी को सुधारने के लिए कई उपाय पैदा किए हैं. लेकिन इस भागती-दौड़ती जिंदगी में हम ऐसे उपायों को दरकिनार या भूलने लगे हैं. लेकिन इन बेहद सरल उपायों को अपनाकर हम आज भी कई परेशानियों से निजात पा सकते हैं. इनमें एक नींद न आने की समस्या है जो खसखस के सेवन से सुलझाई जा सकती है. यह नर्वस सिस्टम को भी कूल रखती है. खसखस एक ऐसा मसाला (ड्राईफ्रूटस भी) है, जिसकी खेती के लिए लाइसेंस लेना पड़ता है.
अफीम से निकाली जाती है खसखस लेकिन…!
पहले तो यह जान लें कि खसखस क्या है और यह कहां से आता है. जान जाएंगे तो चौकेंगे भी और हैरान भी हो जाएंगे. असल में खसखस अफीम के बंदफूल या डोडे से निकले बारीक बीज हैं, जिनमें अफीम के विपरित नशा नहीं होता, लेकिन प्रकृति तो अफीम से ही जुड़ी हुई है. जब अफीम के डोडे में चीरा लगाया जाता है और अफीम या अन्य नशीले पदार्थ बनाने के लिए सारा लिक्विड निकाल लिया जाता है तो इस बचे और सूख गए डोडे में ढेरों बारीक बीज होते हैं, वे ही खसखस कहलाते हैं.
दुनिया का यही एक अकेला ऐसा मसाला है, जिसे उगाने के लिए लाइसेंस लिया जाता है. भारत में तो अफीम उगाने के लिए शासन से लाइसेंस लेना होता है. वैसे कुछ देशों में अफीम को अवैध तरीके से उगाया जाता है. डोडे से निकालकर इन बीजों को प्रोसेस कर सुखा लिया जाता है और वह खसखस बन जाता है.
खसखस और खस का भेद भी जान लें
खसखस दो प्रकार का होता है. एक का रंग नीला होता है, जो पश्चिमी देशों में पाया जाता है. भारत और आसपास के देशों में पाया जाने वाला खसखस सफेद रंग का होता है. इसे पीस और पेस्ट बनाकर डिशेज को गाढ़ा और स्वादिष्ट किया जाता है. इसके अलावा खसखस का उपयोग ब्रेड, केक, कुकीज़, पेस्ट्री, मिठाई और कन्फेक्शनरी में खास स्वाद भरने के लिए किया जाता है. लगे हाथों आपको खसखस और खस में भेद भी बता देते हैं. खसखस तो मसाला या ड्राईफ्रूट है, जबकि खस एक खुशबूदार घास होती है जिसे कॉस्मेटिक्स, कूलर आदि में इस्तेमाल किया जाता है. खस का शर्बत और खस का इत्र भी इसी खुशबूदार घास से बनता है.
इसका उत्पत्ति केंद्र यूरोप का पश्चिमी भूमध्यसागरीय क्षेत्र
खसखस की उत्पत्ति की बात करें तो अफीम के साथ ही यह दुनिया में अपनी ‘रंगत’ दिखा रही है. विभिन्न सभ्यताओं में भोजन के अलावा खसखस का उपयोग सांस्कृतिक कार्यक्रमों व अनुष्ठानों में भी किया जाता है. फूड हिस्टोरियन मानते हैं कि सुमेरियन, मिस्र, यूनानी व रोमन सभ्यताओं में खसखस का उपयोग होता रहा है. Spices Board India का मानना है कि अफीम की उत्पत्ति का केंद्र यूरोप का पश्चिमी भूमध्यसागरीय क्षेत्र है और कानूनी तौर पर दवा आदि बनाने के लिए भारत, रूस, मिस्र, यूगोस्लाविया, पोलैंड, जर्मनी, नीदरलैंड, चीन, जापान, अर्जेंटीना, स्पेन, बुल्गारिया, हंगरी और पुर्तगाल में खेती की जाती है.
दूसरी ओर यह बर्मा, थाईलैंड और लाओस (गोल्डन ट्राइएंगल) और अफगानिस्तान, पाकिस्तान और ईरान (गोल्डन क्रिसेंट) में अफीम को मादक पदार्थों के व्यापार के लिए अवैध रूप से भी उगाया जाता है. जहां-जहां अफीम है, वहां खसखस है. विशेष बात यह है कि नॉनवेज डिश में इसका खूब उपयोग किया जाता है. दूसरी ओर विश्वकोश ब्रिटेनिका (Britannica) के अनुसार खसखस का पौधा, पापावर सोम्निफेरम, ग्रीस और ओरिएंट का एक शाकाहारी वार्षिक मूल निवासी है. यह एक प्राचीन मसाला है.
विशेष मिनरल्स नर्वस सिस्टम को कूल रखते हैं
फूड एक्सपर्ट खसखस को विशेष मानते हैं और उनका कहना है कि मादक पदार्थ से निकले इस ड्राईफ्रूट में गजब के गुण है. यह सर्वविदित है कि खसखस के उपयोग से नींद संबंधी विकार से मुक्ति मिल जाती है. वैसे तो अफीम से जुड़े खसखस में कोई नशा नहीं होता, लेकिन संभव है कि इसने अपनी प्रकृति नहीं छोड़ी हो. लेकिन यह बात जांची-परखी है कि अनुकूल नींद लाने वाली खसखस का कोई विपरित असर नहीं होता है. खसखस में कई ऐसे मिनरल्स पाए जाते हैं जो नर्वस सिस्टम को कूल बनाए रखने में मदद करते हैं.
खसखस में एनाल्जेसिक (दर्दनिवारक) गुण भी प्रभावी तौर पर उपलब्ध है. इसका सेवन शरीर के जोड़ों को दर्द से मुक्ति दिलाने में मददगार है. आयुर्वेद में खसखस से निकाले तेल का उपयोग दर्द निवारण के लिए किया जाता है. खसखस के नियमित सेवन से हृदय की कार्यप्रणाली में सुधार होता है. बीजों में आयरन होता है जो रक्त में ऑक्सीजन के प्रवाह को बढ़ाने में सहायक होता है, यही गुण हृदय को स्वस्थ बनाए रखता है.