नई दिल्ली – भारत में एंटरिक वायरस के खिलाफ वैज्ञानिकों ने पहली बार स्वदेशी जांच तकनीक विकसित की है। इसके जरिये पांच वर्ष तक की आयु के बच्चों में अब महज दो से ढाई घंटे में विभिन्न तरह के डायरिया, हैजा जैसे एंटरिक वायरस और उनके संक्रमण का पता चल सकेगा। यह तकनीक काफी सस्ती है और महज 200 रुपये की कीमत में उपलब्ध हो सकती है।
निजी कंपनियां संभालेंगी कमान
दो ट्यूब वाली इस तकनीक से जांच किट बनाने की जिम्मेदारी एक निजी कंपनी को सौंपी है जो आगामी दिनों में सरकारी अस्पतालों में भी इसे उपलब्ध कराएगी। नई दिल्ली स्थित भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के वैज्ञानिकों ने एंटरिक वायरस को लेकर आरटी पीसीआर जांच तकनीक विकसित की है। ये वे वायरस हैं जो मुख्य रूप से मल-मौखिक मार्ग से फैलते हैं।
ये व्यक्ति-से-व्यक्ति संपर्क या दूषित भोजन व पानी के सेवन से संक्रमण पैदा करते हैं। रोटा वायरस, नोरोवायरस और एडेनो वायरस इसी श्रेणी में आते हैं, जिनकी चपेट में हर साल पांच वर्ष तक के हजारों बच्चे आते हैं। आईसीएमआर के कोलकाता स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च इन बैक्टीरियल इंफेक्शन के शोधकर्ताओं का कहना है कि यह तकनीक आगामी दिनों में भारत के बच्चों में वायरल गैस्ट्रोएंटेराइटिस के प्रबंधन में एक अहम भूमिका निभाएगी।
अभी खर्च और समय दोनों ज्यादा
वर्तमान में बच्चों में एंटरिक वायरस का पता लगाने के लिए 1,000 से 1,5000 रुपये का खर्च आता है। वहीं, किसी भी जांच की रिपोर्ट को आने में कम से कम आठ घंटे लगते हैं। समय से पता चलने से उपचार में मदद मिलेगीl भारतीय बच्चों में डायरिया सबसे आम है। पूरी दुनिया में पांच वर्ष तक के बच्चों की मौत में डायरिया तीसरी मुख्य बीमारी बनी हुई है।
इनमें से 40 फीसदी से ज्यादा मामलों में डायरिया के एंटरिक वायरस ही जिम्मेदार हैं। इसी तरह से वायरल गैस्ट्रोएंटेराइटिस भी है जो अक्सर समय पर पता नहीं चल पाती है और हालत गंभीर होने लगती है। इन सभी मामलों में एक चीज समान है, बीमारी का देरी से पता चलना। ऐसे में नई तकनीक उपचार में बेहद मददगार साबित होगी।
भारत में जोखिम अधिक
आईसीएमआर की वैज्ञानिक डॉ. ममता ने बताया, 2017 से 2019 और 2021 से 2024 के बीच एंटरिक वायरस के प्रसार को लेकर अध्ययन किया गया। बच्चों में जब एंटरिक वायरस की पहचान की गई तो 2017 से 2019 के बीच 48 फीसदी नमूने संक्रमित पाए गए। वहीं, 2021 से 2024 के बीच 44.49 फीसदी नमूने संक्रमित मिले। इससे पता चला कि भारत में पांच वर्ष तक के बच्चों में जोखिम ज्यादा है।