‘प्रेस पंजीकरण विधेयक’ से न्यूज सेक्टर में क्या-क्या होंगे बदलाव

नई दिल्ली- भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में प्रेस की कितनी बड़ी भूमिका रही है ये तो हम सभी को पता है. प्रेस आजादी के बाद से ही बहुमत और विचार के स्वतंत्रता की रक्षा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है. लेकिन, ऑनलाइन मीडिया और इंटरनेट के आने के बाद से दुनिया भर में सूचनाओं के पहुंच का दायरा भी बढ़ा है. आज के जमाने में कोई भी व्यक्ति घर बैठे-बैठे बड़ी ही आसानी से किसी भी देश में क्या चल रहा है इसकी जानकारी पा सकता है.

केंद्र सरकार ने भारत में प्रेस की स्वतंत्रता और व्यापार में सुगमता लाने के लिए एक नए युग की शुरुआत की है. दरअसल 3 अगस्त को राज्यसभा में पारित होने के बाद, प्रेस और आवधिक पंजीकरण विधेयक, 2023 को 21 दिसंबर को लोकसभा में भी पारित कर दिया गया. इस विधेयक को प्रेस एंड रजिस्ट्रेशन ऑफ पीरियॉडिकल बिल  भी कहा जाता है.

क्या है नया प्रेस बिल 2023?

प्रेस और आवधिक पंजीकरण विधेयक 2023, ऑनलाइन माध्यम से पत्र-पत्रिकाओं के शीर्षक और पंजीकरण के आवंटन की प्रक्रिया को सरल बनाता है. आसान भाषा में समझे तो वर्तमान में जो कानून है उसके अनुसार अगर कोई व्यक्ति पीरियॉडिकल, पत्रिका या अखबार छपवाना चाहे तो सबसे पहले उसे उस पत्रिका को रजिस्टर करवाना होगा. इतना ही नहीं उस रजिस्ट्रेशन का नियम भी आसान नहीं है. इसके लिए उस व्यक्ति को कई स्तर की कागजी कार्रवाई करनी होती है. इस कार्रवाई में काफी लंबा वक्त भी लग सकता है. लेकिन सरकार के नए बिल में इसी रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया को थोड़ा आसान किया गया है.

1867 के कानून से कितना अलग है ये विधेयक

1. प्रेस और पुस्तक पंजीकरण अधिनियम 1867 कानून के तहत जिलाधिकारी के पास किसी भी पत्रिका के रजिस्ट्रेशन को सस्पेंड करने या कैंसिल करने का अधिकार होता है. लेकिन, प्रेस बिल 2023 के पास होने के बाद ये रजिस्ट्रेशन करने का अधिकार प्रेस रजिस्ट्रार जनरल के पास हो जाएगा.

2. पुराने कानून के मुताबिक पीरियॉडिकल, पत्रिका या अखबार के प्राकशकों को प्रकाशन से पहले डीएम को शपथ पत्र देना पड़ता है. लेकिन, नए विधेयक में इस तरह की कोई शर्त नहीं तय की गई है. इसका मतलब है कि प्रकाशक को डीएम को शपथ पत्र देने की जरूरत नहीं होगी.

3. प्रेस और पुस्तक पंजीकरण अधिनियम 1867 कानून के अनुसार कोई भी अखबार या पत्रिका के गलत जानकारी छापने पर प्रकाशक को कम से कम 2 हजार का जुर्माना और 6 महीने की जेल हो सकती थी. लेकिन नया नियम कहता है कि जेल केवल उसी स्थिति में हो सकती है जब कोई व्यक्ति बिना रजिस्ट्रेशन के पत्रिका-अखबार छापने की कोशिश करे.

4. प्रेस बिल 2023 के अनुसार ऐसा कोई भी व्यक्ति जो पहले किसी आतंकी गतिविधि या किसी गैरकानूनी काम के लिए सजा काट चुका हो, देश की सुरक्षा से खिलवाड़ करने का कोई कर चुका हो, उसे पत्रिका-अखबार छापने का अधिकार नहीं होगा.

5. इस कानून के दायरे में डिजिटल मीडिया- समाचार को भी लाया गया है. डिजिटल मीडिया के लिए भी वन टाइम रजिस्ट्रेशन यानी OTR के माध्यन से रजिस्ट्रेशन करवाना अनिवार्य होगा तभी वह कोई भी न्यूज दे पाएंगे. पहले डिजिटल मीडिया इस कानून के दायरे में नहीं आता था.

6. ऊपर बताए गए नियमों में बदलाव के अलावा प्रेस बिल 2023 में एक नया प्रावधान जोड़ा गया है. अपीलिय प्राधिकारी का. इस प्रावधान के तहत प्रेस और पंजीकरण अपीलीय बोर्ड बनाया जाएगा. इस बोर्ड में भारतीय प्रेस परिषद के एक अध्यक्ष और दो सदस्य होंगे. अगर किसी प्रकाशक को रजिस्टर करने से इंकार किया जाता है, पीआरजी द्वारा कोई  जुर्माना लगाया जाता है या रजिस्ट्रेशन को टाला जाता है तो प्रकाशक इस बोर्ड के पास शिकायत दर्ज कर सकते हैं.

नए विधेयक में किस नियम में सजा का प्रावधान है 

  • कोई भी पब्लिकेशन बिना रजिस्ट्रेशन के पत्रिका या अकबार छापता है तो ऐसी स्थिति में उस प्रकाशकों या व्यक्ति को पांच लाख का जुर्माना या छह महीने तक की कैद हो सकती है.
  • अगर आपने दिए गए समय पर एनुअल स्टेटमेंट नहीं दिया तो प्रकाशक, कंपनी या व्यक्ति को 20 हजार रुपये जुर्माने का प्रवाधान है.

क्या सरकार चाहती है प्रेस पर नियंत्रण

इस सवाल के जवाब में सीएएजे संयोजक और वरिष्ठ पत्रकार अभिषेक श्रीवास्व कहते हैं कि सरकार ने डिजिटल के लिए 2021 में आइटी रूल्स बनाया था. उसमें एक अपीली ऑफिसर नियुक्त करने और सारे प्रकाशन जो डिजिटल हैं, उनको आइबी मिनिस्ट्री में रजिस्टर करने की बात हुई थी. पिछले दो साल में डिजिटल शिकंजा कसा ही है. पीआईबी के अंदर एक फैक्ट-चेक का महकमा बन गया है और इसकी जद में बड़ी वेबसाइट भी आयी हैं और उन पर भी नियंत्रण हुआ है. सरकार की पहली प्राथमिकता वही थी.

अब एक बार फिर सरकार का पूरा फोकस अखबारों पर आ गया है. इसका कारण यह है कि जो छोटे से छोटे शहर, कस्बों में जो पीरियॉडिकल्स, छोटी पत्रिकाएं, अखबार या टेबलॉृयड निकल रहे हैं, उनमें असहमति के स्वर अभी भी हैं. दरअसल, लगाम इन पर लगानी है. इन पर लगाम दो तरीकों से ही लगेगा. वह तरीका बड़ी पूंजी का है. नया कानून जो बनाया गया उसमें जुर्माना 10 लाख तक है और 6 साल का कैद भी है. दूसरा मामला मुकदमे का है. उसे पारिभाषित करने का अधिकार सरकार के पास है.

उसका कुछ भी लिखा या बोला ‘अप्रिय’ जो देश के प्रति होगा. यह कानून के अंदर है. उसके लिए ‘डिसअफेक्शनेट’ शब्द का इस्तेमाल किया गया है, तो यह तो बहुत ही एब्स्ट्रैक्ट हो गया, एक विषयनिष्ठ यानी सब्जेक्टिव बात हो गयी. यहीं यह पूरा मामला कस जाता है और एक वाक्य में कहें तो ‘ईज ऑप डूइंग बिजनेस’ की खोल में यह सरकारी नियंत्रण का प्रयास ही है.

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