नई दिल्ली-संस्कृत सबसे प्राचीन भाषाओं में से एक है। यह भाषा जितनी प्राचीन है उनती वैज्ञानिक भी। संस्कृत में ऐसे कई श्लोक मौजूद हैं जो व्यक्ति को प्रेरणा देने का काम करते हैं। आइए पढ़ते हैं ऐसे ही कुछ श्लोक जो व्यक्ति को मेहनत करने और सफल होने के लिए प्रेरित करते हैं।
“उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा:।”
अर्थ – सिर्फ इच्छा करने से उसके काम पूरे नहीं होते, बल्कि व्यक्ति के मेहनत करने से ही उसके काम पूरे होते हैं। जैसे सोये हुए शेर के मुंह में हिरण स्वयं नहीं आता, उसके लिए शेर को परिश्रम करना पड़ता है।
“योगस्थः कुरु कर्माणि संगं त्यक्त्वा धनंजय ।सिद्धयसिद्धयोः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ॥”
अर्थ – इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि हे धनंजय! तू आसक्ति को त्यागकर, सफलताओं और विफलताओं में समान भाव लेकर सारे कर्मों को कर। ऐसी समता ही योग कहलाती है
“उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।क्षुरासन्नधारा निशिता दुरत्यद्दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति॥”
अर्थ – उठो, जागो, और अपने लक्ष्य को प्राप्त करो। तेरे रास्ते कठिन हैं, और वे अत्यन्त दुर्गम भी हो सकते हैं, लेकिन विद्वानों का कहना हैं कि कठिन रास्तों पर चलकर ही सफलता प्राप्त होती है।
न चोरहार्य न राजहार्य न भ्रतृभाज्यं न च भारकारि।व्यये कृते वर्धति एव नित्यं विद्याधनं सर्वधनप्रधानम्।।
अर्थ- एक ऐसा धन जिसे चुराया नहीं जा सकता, जिसे कोई भी छीन नहीं सकता, जिसका भाइयों के बीच बँटवारा नहीं किया जा सकता, जिसे संभलना बिल्कुल भी मुश्किल नहीं है और जो खर्च करने पर और अधिक बढ़ता है, वह धन, विद्या है। विद्या सबसे श्रेष्ठ धन है।