Wednesday, July 24, 2024
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नवरात्र पूजा के दौरान सरस्वती आवाहन के जानिए तिथि, विधी और महत्व

नई दिल्ली- नवरात्र पूजा के दौरान सरस्वती पूजा के पहले दिन को सरस्वती आवाहन के रूप में जाना जाता है। यहां आवाहन का अर्थ है देवी सरस्वती का आह्वान करना। यह दिन मुख्यतः देवी सरस्वती का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए मनाया जाता है। ऐसे में आइए जानते हैं नवरात्र पूजा के दौरान सरस्वती आवाहन की तिथि और महत्व।

सरस्वती आवाहन का शुभ मुहूर्त

मूल नक्षत्र का प्रारम्भ 19 अक्टूबर रात 09 बजकर 04 मिनट से हो रहा है। वहीं, इसका समापन 20 अक्टूबर रात 08 बजकर 41 पर होगा। ऐसे में सरस्वती आवाहन का शुभ मुहूर्त 20 अक्टूबर, शुक्रवार के दिन, सुबह 06 बजकर 25 मिनट से 08 बजकर 52 मिनट तक रहेगा।

सरस्वती आवाहन का महत्व 

हिंदू धर्म में मां सरस्वती को ज्ञान और विद्या की देवी के रूप में पूजा जाता है। साथ ही वह साहित्य, कला और स्वर की देवी भी मानी जाती हैं। उन्हें वेदों की जननी भी कहा जाता हैं। ऐसे में मां सरस्वती की पूजा करने से व्यक्ति अपने ज्ञान और बुद्धि के स्तर को बढ़ा सकता है।

नवरात्र के दौरान सरस्वती पूजा 1, 3 या 4 दिन के लिए की जाती है। चार दिवसीय सरस्वती पूजा नक्षत्रों के आधार पर की जाती है। चार दिनों की पूजा को सरस्वती आह्वान, सरस्वती पूजा, सरस्वती बलिदान और सरस्वती विसर्जन के नाम से जाना जाता है, जो क्रमशः मूल, पूर्वा आषाढ़, उत्तरा आषाढ़ और श्रवण नक्षत्र में किए जाते हैं।

सरस्वती पूजा की विधि 

सरस्वती आवाहन के दिन सुबह जल्दी उठकर सर्वप्रथम स्नान आदि से निवृत हो जाएं। इसके बाद पहले पूजा स्थल को गंगाजल से पवित्र करें। अब सरस्वती माता की प्रतिमा अथवा तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद मां सरस्वती के समक्ष धूप-दीप, अगरबत्ती और गुगुल जलाएं।

ऐसा करने से वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है। सफेद रंग को सरस्वती देवी का प्रिय रंग माना जाता है, ऐसे में उन्हें सफेद रंग की मिठाई का भोग लगाएं। इसके बाद मां सरस्वती के मंत्रों का जाप करें। अंत में विधि-विधान पूर्वक मां सरस्वती की पूजा और आरती करें।

कथा

सृष्टि के निर्माण के समय सबसे पहले महालक्ष्मी देवी प्रकट हुई। उन्होंने सबसे पहले त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और शिवजी को जन्म दिया। महालक्ष्मी ने तीनों को अपने अपने गुणों के अनुसार देवियो को प्रकट करने का अनुरोध किया।भगवान शिव ने तमो गुण से महाकाली को भगवान विष्णु ने रजोगुण से माँ लक्ष्मी को और ब्रह्मा ने सत्वगुण से माँ सरस्वती को प्रकट किया।

सृष्टि के निर्माण का कार्य पूरा करके जब ब्रह्मा जी ने देखा की ब्रह्मांड मृत शरीर की तरह शांत है, इसमें न तो कोई स्वर हे न तो वाणी, तब वह यह समस्या लेकर विष्णु जी के पास गए।भगवान विष्णु ने उनसे कहा की माँ सरस्वती आपकी समस्या का समाधान कर सकती है। उनकी विणा में स्वर है। वह सृष्टि में स्वर भर सकती है। तब ब्रह्मा जी ने सरस्वती को सृष्टि में उनकी विणा से स्वर भरने को अनुरोध किया। और सृष्टि स्वर से भर गई।

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