धर्म-अध्यात्म की रोचक बाते- हल्दी की गांठ एक प्राचीन और महत्वपूर्ण हिन्दू शादी की परंपरा है, जिसका महत्व सिर्फ आध्यात्मिक और सांस्कृतिक नहीं है, बल्कि ज्योतिष और वास्तु जैसे विज्ञानों में भी है. इस परंपरा का पालन करना दुल्हन और दूल्हे के लिए शुभ और आवश्यक माना जाता है.
हिन्दू धर्म में विवाह एक पवित्र बंधन को माना जाता है जिसमें अनेक पारंपरिक और आध्यात्मिक अनुष्ठान होते हैं. इन्हीं अनुष्ठानों में से एक है ‘हल्दी की गांठ’. हिंदू धर्म में शादी के समय हल्दी के गांठ की परंपरा का विशेष महत्व है. हल्दी, प्राचीन समय से ही शुभता और पवित्रता का प्रतीक मानी जाती है. वैवाहिक जीवन की शुभता, सुख-शांति और प्रेम के साथ अपने नए जीवन की शुरुआत के लिए यह किया जाता है.
यह एक ऐसी परंपरा है जिसमें दुल्हन की कलाई पर एक हल्दी की गांठ बांधी जाती है, जिसे शादी के बाद दूल्हा खोलता है. इस गांठ का महत्व केवल धार्मिक और सांस्कृतिक नहीं है, बल्कि इसके पीछे अनेक मान्यताएं भी जुड़ी होती हैं. आमतौर पर इसे दुल्हन के लिए शुभ माना जाता है. हालांकि, यह परंपरा सिर्फ दुल्हन के लिए ही नहीं होती, दूल्हे के लिए भी इसे शुभ माना जाता है. हल्दी का महत्व हिन्दू धर्म में सिर्फ रंग और सुगंध से ही नहीं है, बल्कि इसे समृद्धि और संपन्नता का प्रतीक भी माना जाता है. इसलिए, जब दुल्हन एक नए घर में प्रवेश करती है, तो वह उस घर में सुख-समृद्धि और संपन्नता लेकर आती है.
परंपरा का महत्व
ज्योतिष शास्त्र में भी इस परंपरा को बड़ा महत्व दिया गया है. माना जाता है कि हल्दी की गांठ दुल्हन को नकारात्मक ऊर्जा से बचाती है और उसके आसपास की ऊर्जा को शुद्ध और सकारात्मक बनाती है. इसके अलावा, इससे ग्रहों की अशुभ प्रभावों को भी दूर किया जाता है.
गांठ खोलने की रस्म
हल्दी की गांठ खोलने की रस्म भी बेहद महत्वपूर्ण है. इसका रिवाज इस तरह होता है कि दूल्हा को दुल्हन के हाथ में बंधी गांठ को एक हाथ से खोलना होता है और दूसरे हाथ का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. माना जाता है कि यदि दुल्हा इसे सही तरह से खोलता है, तो उनके बीच सम्बन्ध मजबूत होते हैं और वह उत्तम तालमेल में रहते हैं.