EMI बाउंस होने पर भी नहीं देना होगा ब्याज,RBI जारी किये नई गाइडलाइन

नई दिल्ली– ब्याज दर बढ़ने पर लोन की अवधि या ईएमआई बढ़ा दी जाती है और ग्राहकों को इसके असर के बारे में ठीक से बताया भी नहीं जाता है और न ही उनकी सहमति ली जाती है. लेकिन भारतीय रिजर्व बैंक की नई गाइडलाइन के अनुसार अब बैंक ऐसा नहीं कर पाएंगे. बैंक या लोन देने वाले अन्य वित्तीय संस्थाओं को यह साफ साफ बताना होगा कि ब्याज दर बढ़ने से EMI या लोन की अवधि पर क्या असर पड़ेगा.

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने बैंकों और एनबीएफसी (NBFC) सहित अन्य वित्तीय संस्थानों से कहा है कि ब्याज दरें नए सिरे से तय करते समय वे ग्राहकों को ब्याज की निश्चित (फिक्स्ड) दर चुनने का विकल्प उपलब्ध कराएं. इसके अलावा ग्राहकों को ये भी बताया जाए कि उन्हें लोन की अवधि के दौरान इस विकल्प को चुनने का अवसर कितनी बार मिलेगा. आरबीआई के इस ऐलान से महंगी ईएमआई से परेशान लोगों को राहत मिल सकेगी.

क्या हैं नए बदलाव?

  • लोन की मंजूरी के समय बैंकों को अपने ग्राहकों को स्पष्ट तौर पर बताना चाहिए कि मानक ब्याज दर में बदलाव की स्थिति में ईएमआई या कर्ज की अवधि पर क्या असर पड़ सकता है.
  • ईएमआई / अवधि या दोनों में किसी भी वृद्धि के बारे में उचित माध्यम से लोनधारकों को तुरंत सूचित करना होगा.
  • ग्राहकों को स्विचओवर की अनुमति दी जाए यानी आरईएस को लोनधारकों को एक निश्चित दर पर स्विच करने का विकल्प देना होगा.
  • पॉलिसी में यह भी बताया जाए कि उधारकर्ता को लोन की अवधि के दौरान कितनी बार स्विच करने की अनुमति दी जाएगी.
  • ग्राहकों को ये बताना होगा कि लोन को फ्लोटिंग से फिक्स रेट में चेंज करने पर किस तरह के चार्जेस लगाए जाएंगे. लोन की मंजूरी वाले लेटर में इस बारे में जानकारी देनी होगी.
  • लोनधारकों को ईएमआई बढ़ाने, टैन्योर बढ़ाने या दोनों विकल्पों को चुनने या फिर लोन की अवधि के दौरान किसी भी समय, आंशिक या पूर्ण भुगतान करने का विकल्प दिया जाएगा.
  • लोन के प्री-पेमेंट पेनल्टी या फोरक्लोजर चार्जेस मौजूदा निर्देश के अधीन होगा.

लोन देते समय बैंकों को अपने ग्राहकों को साफ तौर पर बताना चाहिए कि मानक ब्याज दर में बदलाव की स्थिति में ईएमआई या कर्ज की अवधि पर क्या प्रभाव पड़ सकता है. प्रत्येक तिमाही के आखिर में एक स्टेमेंट शेयर करना होगा जिसमें अब तक लिए गए मूलधन और ब्याज, ईएमआई अमाउंट, शेष ईएमआई की संख्या और ब्याज की वार्षिक दर की जानकारी होगी. इन वित्तीय संस्थाओं को इस बात का ध्यान रखना होगा कि स्टेटमेंट सरल शब्दों में हो जो कर्ज लेने वाले कस्टमर आसानी से समझ सकें.आरबीआई ने कहा कि ये निर्देश 31 दिसंबर, 2023 तक मौजूदा और नए लोन पर लागू हो जाएं.

RBI ने नए नियम क्यों जारी किए हैं?

केंद्रीय बैंक ने शुक्रवार को जारी अधिसूचना में कहा कि ऐसा देखने में आया है कि ब्याज दर बढ़ने पर कर्ज की अवधि या मासिक किस्त (ईएमआई) बढ़ा दी जाती है और ग्राहकों को इसके बारे में सही तरीके से सूचित नहीं किया जाता है और न ही उनकी सहमति ली जाती है. अब बैंकों को अपने ग्राहकों को यह साफ तौर पर बताना होगा कि बेंचमार्क इंटरेस्ट रेट में बदलाव से उनके लोन की EMI या उसकी अवधि (tenor) पर क्या असर पड़ेगा..

बैंक इंटरनल बेंचमार्क को बदलकर बैंक इंटरेस्ट रेट में बदलाव कर सकते हैं. जोकि Borrower यानि लोनधारकों के हितों को नुकसान पहुंचा सकता है. कई लोन धारकों ने इस बाबत शिकायत की थी कि बैंक आमतौर पर ईएमआई को मनमाने तरीके से बदलते या रीसेट करते हैं और उन्हें बताए बिना लोन की अवधि बढ़ा दी जाती है.

लोनधारक दूसरे बैंक में लोन ट्रांसफर कराकर फ्लोटिंग रेट में बदलाव करवा सकता है, लेकिन इंटरनल बेंच मार्क वाले बैंकों के इंटरेस्ट रेट एक जैसे नहीं होते हैं, ये घटते-बढ़ते रहते हैं भले ही लोन लेने के समय में पुराने बैंक जैसा ही इंटरेस्ट रेट हो. विभिन्न बैंक इंटरनल बेंचमार्क को अलग-अलग तरीके से बदलते या रीसेट करते रहते हैं. ऐसी स्थिति में लोन धारक के पास किसी और बैंक में लोन ट्रांसफर कराने का ऑप्शन नहीं बचता है.

EMI बाउंस होने पर नहीं देना होगा ब्याज

आरबीआई ने बैंकों और एबीएफसी को निर्देश दिया है कि अगर कोई कर्जदार ईएमआई बाउंस करता है तो उसपर फाइन लगाया जा सकता है, लेकिन फाइन पर ब्याज नहीं लगा सकते हैं. रिजर्व बैंक ने हिदायत दी है कि बैंक पीनल इंटरेस्ट को ब्याज से कमाई का जरिया न बनाएं.

पर्सनल लोन क्या हैं?

पर्सनल लोन एक ऐसी क्रेडिट सुविधा है जो बिना किसी कोलैटरल या सिक्योरिटी के आपकी फाइनेंशियल ज़रूरतों को पूरा करने में मदद करती है. आरबीआई के अनुसार, पर्सनल लोन में उपभोक्ता ऋण, एजुकेशन लोन, अचल संपत्तियों के निर्माण के लिए दिए गए लोन और वित्तीय संपत्तियों (शेयर) में निवेश के लिए दिए गए ऋण शामिल हैं.

ब्याज दर रीसेट क्या है?

जब कोई ग्राहक होम लोन लेता है, तो बैंक लोन समझौते में एक निश्चित अवधि के बाद ब्याज दर की समीक्षा करने की अनुमति देता है. एक निश्चित ब्याज दर व्यवस्था में, लोन पर ब्याज दर पूरे कार्यकाल के दौरान समान रहती है, इस प्रकार ईएमआई समान रहती है. अगर आप इसे रीसेट करने का विकल्प चुनते हैं तो ब्याज दरों में बदलाव के साथ आपकी ईएमआई समय-समय पर घटती और बढ़ती रहती है.

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