नई दिल्ली-हमारे देश के प्राइवेट अस्पतालों में बीमारियों का इलाज अगर महंगा है तो उसके पीछे एक बड़ी वह फार्मास्युटिकल कंपनियों की महंगी दवाएं हैं। देश के ज्यादातर गैर-अस्पतालों में डॉक्टर मरीजों को ब्रांडेड दवाएं खरीदने की सलाह देते हैं, जिसकी कीमत काफी ज्यादा होती है। नेशनल मेडिकल काउंसिल भी इस मामले पर चिंता जाहिर कर चुकी है।
फार्मास्युटिकल कंपनियों के पार्टी में शामिल नहीं हो सकेंगे डॉक्टर्स
देश के कई डाक्टर्स फार्मास्युटिकल कंपनियों के जरिए आयोजित कॉकटेल डिनर और सेमिनार में हिस्सा लेते हैं। वहीं, डॉक्टर्स कई प्रकार के लोभ में आकर मरीजों को ब्रांडेड दवाएं खरीदने की सलाह देते हैं।अब देश के डॉक्टर्स फार्मास्युटिकल कंपनियों द्वारा आयोजित ऐसे सेमिनार और पार्टियों में हिस्सा नहीं ले सकेंगे।
निर्देश के अनुसार, डॉक्टर्स किसी ऐसे सेमिनार, वर्कशॉप या कॉन्फ्रेंस में शामिल नहीं हो जाएंगे, जिन्हें फार्मा कंपनियों या संबंधित हेल्थ सेक्टर ने डायरेक्ट या इनडायरेक्ट स्पांसर किया हो।नेशनल मेडिकल काउंसिल ने आदेश जारी करते हुए डॉक्टरों को फार्मास्युटिकल कंपनियों द्वारा आयोजित पार्टियों में शामिल होने पर रोक लगा दी है।अगर कोई डॉक्टर इस आदेश का पालन नहीं करते तो तीन महीने के लिए उनका लाइसेंस रद्द कर दिया जाएगा।
मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव से परामर्श शुल्क लेना गलत- एमसीआई
नए पेशेवर आचरण नियमों की धारा 35 के तहत डॉक्टरों और उनके परिवारों को फार्मास्युटिकल कंपनियों या मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव से परामर्श शुल्क या गिफ्ट लेने से मना करती है। मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया ने डॉक्टरों और उनके परिवारों को फार्मास्युटिकल कंपनियों से गिफ्ट, यात्रा सुविधाएं लेने पर पहले ही रोक लगा दी है।एमसीआई ने जनवरी 2010 में फार्मा कंपनियों द्वारा डॉक्टरों को दिए जाने वाले सभी उपहारों पर प्रतिबंध लगा दिया था।
एमएमसी ने दिए डॉक्टरों को सिर्फ जेनरिक दवा लिखने का आदेश
कुछ दिनों पहले इंडियन मेडिकल एसोसिएशन का कहना है कि एनएमसी का डॉक्टरों को सिर्फ जेनरिक दवा लिखने का आदेश चिंता का विषय है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने नेशनल मेडिकल काउंसिल (एनएमसी) के आदेश का विरोध किया है।