चांद की रोशनी धरती तक कैसे पहुंचती है, जाने इसके पीछे क्या हैं विज्ञानं?

रोचक –  कैलेंडर चांद की कलाओं के आधार पर ही बनाए गए हैं. लेकिन, क्‍या आपने कभी सोचा है कि चांद की रोशनी धरती तक कैसे पहुंचती है? चांदनी को धरती तक पहुंचने में कितना समय लगता है?  सबसे पहले जान लें कि चांद अंधेरे में चमकता जरूर है, लेकिन उसकी अपनी कोई रोशनी नहीं होती है. फिर चांद कैसे चमकता है.

विज्ञान के अनुसार, चंद्रमा की सतह से टकराकर सूर्य का प्रकाश ही धरती तक पहुंचता है. इस कारण रात के समय चंद्रमा हमें चमकता हुआ दिखाई देता है. साफ है कि सीधे चांद से कोई रोशनी धरती पर नहीं आती, बल्कि सूरज का प्रकाश चंद्रमा से परावर्तित होकर हमारे ग्रह तक पहुंचता है. इसी परावर्तन के कारण चांद भी चमकता हुआ दिखता है. अगर मान लें कि चांद की रोशनी ही धरती तक पहुंचती है तो इसे पहुंचने में कितना समय लगता है? चंद्रमा से पृथ्वी की दूरी 3,84,400 किमी है. प्रकाश की गति 3 लाख किमी प्रति सेकंड होती है.

चांद की रोशनी धरती तक पहुंचने में कितना वक्‍त लेती है

चांद और धरती के बीच की दूरी और प्रकाश की गति के आधार पर चांद की रोशनी धरती तक सिर्फ 1.3 सेकंड में पहुंच जाती है. सूर्य पृथ्वी से 14.96 करोड़ किमी दूर है. लिहाजा, सूर्य की रोशनी पृथ्‍वी तक पहुंचने में 8 मिनट 16.6 सेकंड लगते हैं. धरती पर चांद की किरणों की तीव्रता बहुत ही कम होने के कारण हमें किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाती हैं. कई बार चांद के चारों ओर इंद्रधनुष की तरह छल्‍ले नजर आते हैं. इसे ‘हेलो रिंग’ कहा जाता है. ये भी हमें किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाते हैं.

कई बार दिन में क्यों दिखाई देने लगता है चंद्रमा

आपने कई बार देखा होगा कि रात को शीतल चांदनी बिखेरने वाला चांद दिन की रोशनी में भी दिखाई देने लगता है. ये खगोलीय घटना आखिर कैसे होती है? दरअसल, चांद के दिन में नजर आने की सबसे बड़ी वजह सूर्य के प्रकाश में कमी होती है.

हम दिन के दौरान चंद्रमा क्यों नहीं देख सकते? - Quora

फिर भी सूर्य के प्रकाश के परावर्तित होने के चलते ही चांद हमें दिन में दिखाई देता है. आसान शब्दों में समझें तो जब सूर्य का प्रकाश कम होता है तो हमें चांद दिन में दिखाई देता है. ये घटना ज्‍यादातर बार सूरज के उदय और अस्त होने के वक्त यानी अलसुबह या शाम के समय होती है. इसलिए हमें भ्रम होता है कि चांद कभी-कभी दिन में भी निकलता है.

दिन में चांद दिखने का क्‍या है वैज्ञानिक तर्क

वैज्ञानिक तर्क से समझें तो हमारे वायुमंडल में गैस के कुछ कण घूमते रहते हैं. इनमें नाइट्रोजन और ऑक्सीजन रोशनी बिखेरते हैं. ये एक छोटी तरंग भी निकालते हैं, जो नीले और बैंगनी रंग की होती है. ये एक अलग दिशा में प्रकाश को अवशोषित और फिर से उत्सर्जित करती है. ऐसे में आसमान का रंग ज्‍यादा नीला हो जाता है. इससे सूर्य का प्रकाश कम होने से दिन में चांद दिखाई देता है.तारों का प्रकाश भी बहुत ज्यादा होता है. ये चंद्रमा के मुकाबले काफी कम होता है.  सूरज की रोशनी के सामने तारों की चमक फीकी पड़ जाती है. इसलिए दिन में तारे दिखना काफी मुश्किल होता है.

लगातार गोल क्‍यों नहीं दिखाई देता है चांद

चंद्रमा धरती का एक चक्कर 30 दिन में पूरा करता है. इस दौरान वह एक बार पृथ्वी व सूर्य के बीच में आता है तो एक बार पृथ्वी के पीछे और पूरे चक्कर के दौरान वह सूर्य तथा पृथ्वी से अलग-अलग कोण बनाता है. जब चंद्रमा पृथ्वी के आगे आता है, तब सूर्य से आने वाली किरणें प्रतिबिंबित होकर धरती पर नहीं आतीं और वह दिखाई नहीं दे पाता. ऐसा अमावस की रात होता है.

जब चंद्रमा पृथ्वी के पीछे होता है तो सूर्य की किरणें चंद्रमा पर पड़कर पृथ्वी तक सीधे आती हैं और चांद पूरा गोल दिखाई देता है. यह पूर्णिमा की रात होता है. वहीं, महीने में दो बार सूर्य पृथ्वी और चंद्रमा समकोण बनाते हैं. ऐसे में चंद्रमा आधा दिखाई देता है. इसी तरह अलग-अलग कोणों के कारण चंद्रमा के अलग आकार दिखाई देते हैं. इन्‍हें चंद्रमा की कलाएं भी कहा जाता है.

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