गंगा पुष्कर कुम्भ- शनिवार 22 अप्रैल से उप्र के काशी में गंगा पुष्कर कुंभ शुरू हो गया है। इस कुंभ में खासतौर पर आंध्र प्रदेश और तेलंगाना से लाखों लोग पहुंचते हैं और गंगा स्नान के साथ ही अपने पितरों के लिए पिंडदान, श्राद्ध कर्म करते हैं।12 साल में एक बार जब गुरु ग्रह मेष राशि में और अश्विनी नक्षत्र में प्रवेश करता है, तब गंगा पुष्कर कुंभ मेला लगता है। ये कुंभ 3 मई तक चलेगा।
गंगा पुष्कर का धार्मिक महत्व
आंध्र प्रदेश की धार्मिक मान्यता के अनुसार पुष्कर नाम के शिव भक्त ने कई सालों की तपस्या की। तब देव गुरु बृहस्पति के कहने पर शिवजी ने उसे नदियों में रहकर उन्हें पवित्र करने का वरदान दिया। इसके बाद गुरु के राशि परिवर्तन पर पुष्कर स्नान की परंपरा शुरू हुई।
हर साल गुरु के राशि परिवर्तन से इस पुष्कर कुंभ स्नान के लिए नदी तय होती है। इसे ऐसे समझ सकते हैं, कि जब गुरु मेष राशि में होता है तो गंगा, वृष में रहता है तो नर्मदा और मिथुन राशि में होता है तब सरस्वती, इसी तरह गुरु के राशि परिवर्तन के हिसाब से पवित्र नदियों में स्नान करने की परंपरा है। ये 12 पवित्र नदियां गंगा, नर्मदा, सरस्वती, यमुना, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, भीमा, ताप्ती, तुंगभद्रा, सिंधु और प्राणहिता है।
जब गुरु 12 राशियों में पहली यानी मेष राशि में होता है तब गंगा नदी में भक्त पुष्कर का निवास माना जाता है। 12 दिनों के इस पुष्कर कुंभ में गंगा स्नान करने की परंपरा है। 12 दिनों का कुंभ इसलिए, क्योंकि इन दिनों में गुरु अश्विनी नक्षत्र के पहले चरण में होता है। जो कि 27 नक्षत्रों में पहला है। मान्यता है कि इस नक्षत्र में गुरु के रहते गंगा स्नान करने से रोग दूर होते हैं।ये पितृ शांति के लिए भी खास समय होता है। इस दौरान गंगा स्नान करने और गंगा के जल से पितरों का तर्पण करने से मोक्ष मिलता है। इस दौरान किए गए श्राद्ध-तर्पण से 12 सालों तक पितर तृप्त हो जाते हैं।
इस बार अक्षय तृतीया का संयोग
इस बार गंगा पुष्कर कुंभ अक्षय तृतीया के दुर्लभ संयोग में शुरू हो रहा है। इसी पर्व पर गंगोत्री धाम के कपाट भी खुले। ऐसा शुभ संयोग पिछले 100 सालों में नहीं बना। वहीं, इस कुंभ के दौरान गुरु, सूर्य और राहु मेष राशि में रहेंगे। इन तीनों की विशेष स्थिति में पितरों के लिए किया स्नान-दान अक्षय पुण्य देने वाला रहेगा।
गंगा पुष्कर मेले से क्या-क्या होगा विशेष
गंगा पुष्कर मेले के लिए सरकार ने पूरी तैयारी की है। काशी के घाटों पर साफ-सफाई बार-बार की जाएगी। श्रद्धालुओं के चेंजिंग रूम बनाए गए हैं।इस मेले की वजह से वाराणसी के मणिकर्णिका घाट, केदार घाट, ललिता घाट और अस्सी घाट के साथ ही यहां मंदिरों में भी भक्तों की भीड़ बढ़ेगी। काशी विश्वनाथ मंदिर, विशालाक्षी मंदिर, काल भैरव मंदिर , संकटमोचन, दुर्गा मंदिर सहित वाराणसी के अन्य मंदिरों में भक्तों के लिए दर्शन की विशेष व्यवस्था रहेगी।
इस मेले में खासतौर पर आंध्र प्रदेश और तेलंगाना से काफी लोग पहुंचते हैं। तेलुगु भाषी लोगों के साथ मिलकर प्रशासन ने इस आयोजन की तैयारी की है। इस मेले में शामिल होने वाले श्रद्धालुओं के लिए शहर के होटलों, धर्मशालाओं की सूची तैयार की गई है और शहर के महत्वपूर्ण स्थानों पर ये सूचियां लगाई गई हैं।
मेला स्पेशन ट्रेन
गंगा पुष्कर मेले में शामिल होने के लिए आंध्र प्रदेश और तेलंगाना से लोग बनारस पहुंचते हैं। भीड़ को देखते हुए साउथ सेंट्रल रेल्वे ने काशी पहुंचने के लिए कई ट्रेन शुरू की हैं। जो 22 अप्रैल से 9 मई तक चलेंगी। सिकंदराबाद, प्रयागराज और वाराणसी होते हुए रक्सोल के लिए स्पेशल ट्रेनें चलाई जाएंगी।
इस रूट पर 23 अप्रैल, 30 अप्रैल और 7 मई को स्पेशल ट्रेनें मिलेंगी। तिरुपति, प्रयागराज और वाराणसी होते हुए दानापुर पहुंचने के लिए 22, 29 अप्रैल और 6 मई को विशेष ट्रेनें रहेंगी। 22 अप्रैल, 29 अप्रैल और 6 मई को गुंटूर और प्रयागराज से होते हुए बनारस के लिए विशेष ट्रेनें चलेंगी।आंध प्रदेश और तेलंगाना से काशी आने वाले लोगों के लिए काशी में कई दक्षिण भारतीय आश्रमों में विशेष व्यवस्था की गई है। यहां अन्नक्षेत्र भी चलाए जा रहे हैं, यहां श्रद्धालुओं का भोजन मिल सकेगा।