आगामी शैक्षणिक सत्र 2023-24 में स्नातक और स्नातकोत्तर प्रोग्राम के छात्र अब विषयों के साथ भारतीय ज्ञान परंपरा की पाठ भी पढ़ेंगे

नई दिल्ली-देश के सभी उच्च शिक्षण संस्थानों में आगामी शैक्षणिक सत्र 2023-24 में स्नातक और स्नातकोत्तर प्रोग्राम के छात्र अब विषयों के साथ भारतीय ज्ञान परंपरा की पाठ भी पढ़ेंगे। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने इसका मसौदा तैयार किया है। इसमें छात्र भारतीय गणित प्रणाली, बीज गणित, ज्योतिषीय उपकरण, मूृर्ति पूजा, साहित्य, वेदांग दर्शन, औषधि प्रणाली, स्वास्थ्य दर्शन और कृषि के बारे में पढ़ेंगे। आगामी सत्र 2023 से चार वर्षीय स्नातक पाठ्यक्रम के तहत दाखिले होंगे।
इसमें भारतीय ज्ञान परंपरा को कोर्स में शामिल करने की तैयारी है। भारतीय ज्ञान परंपरा की पढ़ाई करने वाले छात्रों को स्नातक प्रोग्राम में कुल अनिवार्य कोर्स में से कम से कम पांच फीसदी क्रेडिट इस कोर्स से मिलेंगे।उच्च शिक्षा के पा उच्च शिक्षण संस्थानों को स्नातक प्रोग्राम के पाठ्यक्रम के पहले चार सेमेस्टर में  भारतीय ज्ञान परंपरा के कोर्स को रखना होगा। हालांकि यह ऐच्छिक कोर्स होगा।

इनमें कुछ फाउंडेशन कोर्स और कुछ संभावित ऐच्छिक कोर्स भी हैं। ऐच्छिक कोर्स में भारतीय तर्क, भारतीय भाषा विज्ञान, भारतीय धातु शास्त्र, भारतीय वास्तु शास्त्र आदि हैं। वहीं, ऐच्छिक कोर्स में कुछ विशेष विषयों में भारतीय बीज गणित, भारतीय ज्योतिषीय उपकरण, भारतीय मूर्ति विज्ञान, भारतीय वाद्य यंत्र, पूर्व ब्रिटिशकालीन भारत में जल प्रबंधन आदि शामिल हैं।  फाउंडेशन कोर्स में भारतीय सभ्यता से जुड़े साहित्य, वेदांग और भारतीय ज्ञान परंपरा के अन्य विषय शामिल हैं। इसमें भारतीय गणित, भारतीय ज्योतिष, भारतीय स्वास्थ्य विज्ञान, भारतीय कृषि आदि शामिल हैं।

संस्कृत विवि के कोर्स में बदलाव की सिफारिश

कई संस्कृत विश्वविद्यालय विभिन्न शास्त्रों में आचार्य या स्नातकोत्तर डिग्री पाठ्यक्रम कराते हैं। यूजीसी ने मसौदे के माध्यम से सुझाव दिया है कि उक्त कोर्स के इन पाठ्यक्रम को नए तरीके से डिजाइन करने की जरूरत है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ये भारतीय ज्ञान परंपरा के अनुरूप हों।

इसमें कहा गया है कि संस्कृत विश्वविद्यालयों में भारतीय संगीत, भारतीय दर्शन या आयुर्वेद अथवा शास्त्रों का अध्ययन आदि भारतीय ज्ञान परंपरा के अनुरूप नहीं है और पश्चिमी ज्ञान पद्धति एवं मीमांसा के अनुरूप अध्ययन या शोध कराने पर केंद्रित हैं। इनमें से कुछ की जरूरत हो सकती है, लेकिन इन पाठ्यक्रमों की जड़े भारतीय ज्ञान परंपरा में समाहित होनी चाहिए।

पीजी कोर्स को नेट परीक्षा में शामिल करेंगे  

फिलहाल, स्नातकोत्तर कोर्स में कुछ विषय भारतीय ज्ञान परंपरा का हिस्सा है, जिनमें भारतीय संगीत में मास्टर ऑफ आर्ट्स, भारतीय दर्शन में मास्टर ऑफ आर्ट्स, भारतीय औषधि प्रणाली की विभिन्न शाखाओं में स्नातकोत्तर कोर्स आदि शामिल हैं।  इन विषयों में स्नातकोत्तर कोर्स के भारतीय ज्ञान परंपरा का हिस्सा बनने को मंजूरी मिलने और इनकी पढ़ाई शुरू होने के बाद आईकेएस के भाग के तौर पर इन्हीं पाठ्यक्रमों को नेट परीक्षा आयोजित करने के लिए शामिल किया जा सकता है।  उदाहरण के तौर पर अगर कोई छात्र स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के रूप में न्याय या गणित की पढ़ाई कर रहा हो तब वह न्याय अथवा गणित में नेट परीक्षा दे सकता है।

भारतीय सांस्कृतिक विरासत, पर्यावरण, कौशल खेल, योग पर काम तो स्वायत्त कॉलेज का दर्जा

भारतीय सांस्कृतिक विरासत, पर्यावरण, कौशल, खेल, भाषा, देश की रणनीतिक जरूरतों को पूरा करने वाले कार्यक्रम, भारतीय ज्ञान प्रणाली, योग, रक्षा अध्ययन में काम करने वाले कॉलेजों के स्वायत्त कॉलेज बनने की राह आसान हो गई है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने स्वायत्त कॉलेज विनियम 2023 को अधिूसचित कर दिया है। इस वर्ग में शामिल होने वाले कॉलेज अब दाखिला नियम खुद बनाने से लेकर पूर्व विश्वविद्यालय की स्वीकृति से पीएचडी की पढ़ाई भी करवा सकेंगे।

यूजीसी के सचिव प्रोफेसर मनीष आर जोशी ने बृहस्पतिवार को स्वायत्त कॉलेज विनियम 2023 को अधिसूचित कर दिया है, जोकि तत्काल प्रभाव से लागू माना जाएगा। स्वायत्त काॅलेजों को काम करने की आजादी तो मिलेगी, लेकिन उनकी नियमित निगरानी के लिए स्वायत्त महाविद्यालय में आईक्यूएसी का गठन किया जाएगा।

साल में एक बार उनके कामकाज की समीक्षा भी होगी। स्वायत्त कॉलेज को अपने वेब पोर्टल पर समय-समय पर सभी जानकारियां भी अपलोड करनी होगी। ऐसे कॉलेजों को परीक्षा प्रकोष्ठ बनाना होगा। वहां छात्र मूल्यांकन और परीक्षा के सभी अभिलेखों को सुरक्षित रखा जाएगा। अब स्वायत्त कॉलेजों बनने के लिए नियमों में छूट दी गई है।

पढ़ाई से लेकर नए पाठ्यक्रम शुरू करने की आजादी

ऐसे कॉलेजों को पढ़ाई से लेकर नए पाठ्यक्रम शुरू करने के लिए बार-बार विश्वविद्यालय और यूजीसी से अनुमति नहीं लेनी होगी। स्नातक और स्नातकोत्तर प्रोग्राम में अब वे प्रमाणपत्र या डिप्लोमा पाठ्यक्रम शुरू करने के लिए स्वतंत्र होंगे।

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