नई दिल्ली- केंद्र सरकार ने इस बजट में जिस तरह से कौशल विकास और युवाओं को रोजगार से जोड़ने की प्रतिबद्धता दिखाई, उस दिशा में मजबूत कदम अब बढ़ते नजर आ रहे हैं। व्यावसायिक शिक्षा और कौशल विकास संबंधी डिप्लोमा शुरू करने के लिए इस तरह की गाइडलाइन्स का ड्राफ्ट तैयार किया गया है कि कामचलाऊ पढ़ाई कराकर सिर्फ डिप्लोमा बांट देने वाले संस्थान चल ही नहीं सकेंगे। ड्राफ्ट का अहम बिंदु है कि तीन वर्ष में 70 प्रतिशत छात्रों को प्लेसमेंट दिलाने वाले संस्थानों को ही डिप्लोमा कोर्स चलाने की मान्यता आगे दी जाएगी।
युवाओं को तुरंत मिले रोजगार
व्यावसायिक शिक्षा और कौशल विकास को नई शिक्षा नीति के परिप्रेक्ष्य में व्यावहारिक और रोजगारपरक बनाने के लिए सरकार इन क्षेत्रों में समान मानक और नियमों के साथ गाइडलाइन बनाने जा रही है। सरकार द्वारा गठित समिति ने इसके लिए ड्राफ्ट तैयार कर लिया है।
इसमें खास जोर दिया गया है कि संस्थानों की भूमिका सिर्फ छात्रों से फीस वसूलकर डिप्लोमा बांट देने की न रहे, बल्कि सरकार चाहती है कि व्यावसायिक शिक्षा और कौशल विकास का स्तर ऐसा हो, जिससे कि युवाओं को तुरंत रोजगार मिले और उद्योग जगत की भी मानव श्रम की आवश्यकता पूरी हो।
संस्थानों को प्लेसमेंट प्रतिशत से दिखाना होगा अपना प्रदर्शन
ड्राफ्ट में संस्थानों के लिए शर्त रखी गई है कि डिप्लोमा या पोस्ट डिप्लोमा के लिए नेशनल काउंसिल फॉर वोकेशनल एजुकेशन एंड ट्रेनिंग (एनसीवीईटी) द्वारा प्रारंभिक मान्यता सिर्फ एक वर्ष के लिए दी जाएगी। फिर प्रदर्शन के आधार पर अगले एक-एक वर्ष के लिए मान्यता बढ़ाई जाएगी। मान्यता को चरणवार इसलिए रखे जाने का विचार है, क्योंकि यह नियम बनाने की तैयारी है कि संस्थानों को प्लेसमेंट प्रतिशत से अपना प्रदर्शन दिखाना होगा।
प्रत्येक संस्थान के लिए यह अनिवार्य होगा कि वह तीन वर्ष में जितने भी अभ्यर्थियों को डिप्लोमा कराएगा, उनमें से 70 प्रतिशत का प्लेसमेंट होना चाहिए। एक बैच में अधिकतम 30 छात्र होंगे। संस्थान की क्षमता का आकलन कर एनसीवीईटी 30 से कम सीटें भी किसी संस्थान को आवंटित कर सकता है। विशेष परिस्थिति में संस्थान की प्रतिष्ठा और प्रदर्शन के आधार पर अतिरिक्त बैच की अनुमति भी दी जा सकेगी।
संस्थान के निदेशक मडंल में होंगे उद्योगों के प्रतिनिधि
अभी तक ऐसी कुछ रिपोर्ट सरकार के सामने आ चुकी हैं कि कौशल प्रशिक्षण या प्रमाण-पत्र देने वाले संस्थानों का उद्योग जगत से कोई तालमेल या संपर्क ही नहीं है, जिसके चलते वह प्रशिक्षणार्थियों को अप्रेंटिसशिप और प्लेसमेंट तक उम्मीद के अनुरूप नहीं करा सके हैं।
इसे देखते हुए ही अब डिप्लोमा कराने के इच्छुक संस्थानों के लिए शर्त रखी जा रही है कि उनका टाई-अप किसी औद्योगिक निकाय के साथ होना चाहिए। मान्यता के लिए एमओयू या करार दिखाना होगा। इससे भी महत्वपूर्ण यह कि उद्योगों के प्रतिनिधि या सदस्य को संस्थान के निदेशक मंडल या गवर्निंग काउंसिल में शामिल करना होगा, ताकि उनकी भूमिका महत्वपूर्ण निर्णय और प्रबंधन में रहे।