Gold Mining: यूनियन बजट 2023 में चांदी और डायमंड के साथ सोने को भी महंगा कर दिया गया है. सोने का इस्तेमाल ज्यादातर ज्वैलरी में किया जाता है. महिलाएं सोने के कुंडल, बाली, नथ, हार अंगूठी और मांग टीका आदि पहनती हैं तो वहीं पुरुष भी अंगूठी आदि पहनते हैं. कई लोग तो सोना खरीदकर उसे फ्यूचर के लिए सेव करके भी रखते हैं. शायद आपके घर में भी ऐसा होता होगा, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि सोना निकलता कैसे है? इसे कैसे ढूंढा जाता है? आइए इस खबर में जानते हैं कि कैसे पता चलता है कि इस जगह पर ज़मीन के अंदर सोना है.
सोना ढूंढने का काम कौन करता है?
जमीन के नीचे सोने या फिर किसी भी धातु का पता लगाने के लिए दो तरह की टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाता है. इसमें पहली GPR यानी ग्राउंड पेनीट्रेटिंग रडार तकनीक है और दूसरी VLF यानी वेरी लो फ्रीक्वेंसी तकनीक है. सोना या किसी धातु को निकालने का ये सर्वे ASI (आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया) और GSI (जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया) की टीमें करती हैं. ASI, भारत के संस्कृति मंत्रालय से जुड़ी एक भारतीय सरकारी एजेंसी है. दूसरी तरफ, GSI भारत की एक वैज्ञानिक एजेंसी है. GSI भारत के खान मंत्रालय के तहत सरकार का एक संगठन है.
ग्राउंड पेनीट्रेटिंग रडार क्या है?
GPR प्रोसेस के जरिए मिट्टी की परत-दर-परत जांच की जाती है. जांच में मिट्टी के भौतिक गुणों जैसे घनत्व, चुंबकीय गुण, रेजिस्टिविटी को रिकॉर्ड किया जाता है. इसके बाद, इसी आधार पर एक ग्राफ तैयार करके यह अंदाजा लगाया जाता है कि नीचे कौन-कौन से तत्व हो सकते हैं. फिर एनालिसिस होता है. प्रोसेस में जमीन के नीचे ड्रिलिंग कर थोड़ा-थोड़ा मैटेरीयल निकाल कर उसकी भी जांच होती है. इससे मिट्टी के नीचे आखिर क्या है, इसकी जांच होती है.
वेरी लो फ्रीक्वेंसी क्या है?
VLF टेक्नोलॉजी के जरिए भी जमीन के अंदर की धातु, (सोना, चांदी, तांबा आदि) का पता लगाया जाता है. इसके लिए जमीन में तरंगे भेजी जाती है. एक बार इन तरंगों से टकराने के बाद VLF रिसीवर वस्तु के चारों ओर इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड बना देता है. खास मेटल से टकराकर एक आवाज पैदा होती है, जिसके जरिए यह पता लगाया जाता है कि जमीन के नीचे कौन सा तत्व या धातु है.
कैसे निकाला जाता है सोना ?
भारत दुनिया के सबसे बड़े सोने के उपभोक्ताओं में से एक होने के बावजूद, खनन बाजार छोटे पैमाने पर काम करता है और इसमें प्रवेश करना आसान नहीं है. 2020 में सोने की खान का उत्पादन सिर्फ 1.6 टन था. ” रिपोर्ट में नियामक चुनौतियों, कराधान नीतियों और बुनियादी ढांचे को प्रमुख समस्या क्षेत्रों के रूप में सूचीबद्ध भी किया गया है.
भारत में सोने का सबसे अधिक उत्पादन कर्नाटक राज्य में होता है (, कोलार ,हुट्टी और उटी नामक खानों से) और इसके अलावा आंध्र प्रदश और झारखण्ड (हीराबुद्दीनी और केंदरूकोचा की खानों से) के कुछ भागों से भी सोना निकाला जाता है सोना आमतौर पर या तो अकेले या पारे या सिल्वर के साथ मिश्र धातु के रूप में पाया जाता है। कैलेवराइट, सिल्वेनाइट, पेटजाइट और क्रेनराइट अयस्कों के रूप में भी यह पाया जाता है।
अब ज्यादातर स्वर्ण अयस्क या तो खुले गड्ढों से आता है या फिर भूमिगत खानों से। इस लेख में हम झारखण्ड की एक खदान के बारे में बता रहें हैं, जहां से एक टन पत्थर से लगभग 4 ग्राम सोना निकाला गया और हर वर्ष औसतन 7 किलोग्राम सोना निकाला जा रहा है.
सोना निकालने की 7 प्रक्रियाएं हैं इनमे पहली 4 में मानव के हाथों से होती हैं, जबकि 3 रासायनिक हैं l
प्रक्रिया 1 : विस्फोटकों से चट्टानों को तोड़ना
किसी पत्थर को तोड़कर उसकी जांच भूविज्ञानी (Geologist) करते हैं और फिर उस चिन्हित चट्टान को डाइनेमाइट की मदद से तोड़ा जाता है l 300 से 500 मीटर की गहराई से करीब 1 टन पत्थर निकाला जाता है और पूरे दिन में करीब 300 टन मलबा बाहर निकाला जाता है l सोना एक जगह पर जमा नही होता है और यह स्वर्ण अयस्क के रूप में अलग-अलग जगह मिलता है।
प्रक्रिया 2 : पत्थरों की पिसाई :-इस निकाले गए मलबे के पत्थरों को मशीन की सहायता से बारीक बालू की तरह पीसा जाता है l इस प्रक्रिया को पूरा करने में करीब 4 से 5 घंटे लगते हैं l
प्रक्रिया 3 : बालू को गीला करने की प्रक्रिया: बालू में पानी डाला जाता है और फिर इसको एक टेबल पर डाला जाता है, जिस पर गीला कंबलनुमा कपड़ा बिछा रहता है l जब गीले कण इस कंबल की ऊपर से निकलते हैं, तो सोने के कण इस कंबल में चिपक जाते हैं और फालतू का पत्थर बाहर निकल जाता है ; यह प्रकिया कई बार दोहराई जाती है l यह प्रक्रिया एक वाइब्रेटिंग टेबल पर संपन्न की जाती है, जिसमे पत्थर छन जाता है l
प्रक्रिया 4 : कंबल को धोने की प्रक्रिया: पानी में कंबल धोने से सोने के कण अलग हो जाते हैं l सोना मिश्रित इस पानी को टेबल पर डाला जाता है, जहां से पानी बह जाता है और सोने के अंश टेबल पर जमा हो जाते हैं l फिर इस जमा हुए सोने से बिस्किट, ईंट प्लेट और अन्य सामान बनाया जाता हैl
जरुरत पड़ने पर इन रासायनिक प्रक्रियाओं को करना पड़ता है
पहली रासायनिक प्रक्रिया (सायनाइड की प्रक्रिया ):-यदि अयस्क में सोने की मात्रा कम है, तो रासायनिक प्रक्रिया का सहारा लिया जाता है l खान से निकले पत्थरों और इसके चूर्ण को कार्बन पल्स प्लांट में प्रोसेस करते हैं; इस पर पोटेशियम सायनाइड डालकर 48 घंटे तक छोड़ देते हैं l सायनाइड से रासायनिक प्रतिक्रिया के बाद मलबे में छिपा सोना तरल रूप में बाहर आ जाता है l
दूसरी रासायनिक प्रक्रिया (अमलगमेशन): स्वर्ण अयस्क से शुद्ध सोना हासिल करने के सभी तरीकों में सबसे पहले अयस्क को धोया जाता है और फिर उसे मिल भेज दिया जाता है। मिल में अयस्क को पानी के साथ छोटे-छोटे कणों में पीस लिया जाता है। इसके बाद अयस्क को पारे की परत चढ़ी हुई प्लेटों से होकर गुजारा जाता है। स्वर्ण और पारा मिलकर अमलगम बना लेते हैं। इस प्रक्रिया को अमलगमेशन कहा जाता है। एक बार अमलगम बन जाने के बाद इसे तब तक गर्म किया जाता है, जब तक कि पारा गैस बनकर उड़ नहीं जाता। इसके बाद सोना बचा रह जाता हैl पारे की गैस बहुत ज्यादा जहरीली होती है और इसीलिए इसके निकलते वक्त सावधानी बरतने की जरूरत है।
तीसरी रासायनिक प्रक्रिया ( फ्लोटेशन) :एक और तरीका है, जिसे फ्लोटेशन कहा जाता है। जमीन से निकले अयस्क को एक घोल में रखा जाता है, जिसमें झाग बनाने वाले तत्वों के अलावा संग्राहक तत्व भी होते हैं और कुछ दूसरे केमिकल्स भी। झाग बनाने वाला तत्व इस पूरे घोल को झाग में बदल देता है। संग्राहक तत्व सोने के कणों को आपस में बांधते हैं, जिससे एक तेलीय फिल्म बन जाती है, जो सतह पर हवा के बुलबुलों से जुड़ जाती है। इसके बाद सोने की इस फिल्म को अलग कर लिया जाता है।